SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ३० राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान-विद्याभूषण-ग्रन्थ-संग्रह-सूची] का लिपिसमय पत्रसंख्या विशेष विवरण आदि ग्रन्थनाम क्रमाङ्क | १७४३१५१ १३ | गुटका जिसमें • रज्जब दादूशिष्य | रज्जवजीकी वाणी, साखी, कवित्त, सवैया, पद, परिल और स्फुट ग्रन्थ । छंटे हुए। पुस्तक मालपुरेसे पुरोहित कल्याणवक्षजीसे | वैशाख वदि ५ सं० १९७४को प्राप्त । प्राचीन लिपि । खालका दीमक खाया हुआ | गत्ता पुट्ठे पर अन्दरके कागज पर संवत् । १७३२ और १७४३ लिखा है। इसकी लिखावटको चाल भी पुरानी ही है । कागज भी पुराना है। साली और पदोंको छांटा (चुना) है। यह छांटनेको चाल उस समय चल पड़ी थी क्योंकि इस समयफी और भी कुछ पुस्तकों में साखी छटी हुई हैं। क्रिया, सकार, द्वित्वका प्रभाव और जोशीके लड़कोंको सी लिखावट भी पुरानेपनका प्रमाण है। खुला हुआ (पत्राकार) : . आदिये ३२ पत्र नहीं है। .. बीचमें पत्र खण्डित हैं। ... .... ३३-७२ ७२-८६ ८६-१०२ वाजीद १४ गुटका (१) दावाणी साखी ३६ अंग दादू (२) कवीरजीको साखी २६ अंग कबीर (३) मिया वाजीदजीकी साखी १८ अंग (४) कबीरजीको रमैणी व अष्टपदी, कबीर, हरिदास । (५) सकलगगहा प्रावि हरिदासजी ३० ग्रन्थ (६) जैनजंजाल ..... रज्जब . १०२-११८ ११५फा पत्र नहीं है। .. पत्र बहुत जीर्ण हैं। अतः मरम्मत होनेसे पहिले विवरण नहीं भरा जा सकता। ११८वां
SR No.010606
Book TitleVidyabhushan Granth Sangraha Suchi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGopalnarayan Bahura, Lakshminarayan Goswami
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1961
Total Pages225
LanguageHindi
ClassificationCatalogue
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy