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राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान-विद्याभूषण-ग्रन्थ-संग्रह-सूची ] क्रमाङ्क
......कर्ता
....२६.... विशेष विवरण आदि
... ग्रन्यनाम
लिपिसमय पत्रसंख्या
(१२)
१७४३ और: १७४१ : यदि यह लेखनसमय हो तो पुस्तक का प्राचीन होना सिद्ध होता है परंतु पहले ४३ और फिर ४१ लिखना तथा मिती भी ठीक न लिखना संदेह उत्पन्न करता है। शायद असल पुस्तकमें जिससे नकल की गई होगी ये संवत्, मिती लिखे होंगे, परंतु पुस्तकके पन्ने पुराने और जीर्ण होनेसे इसके प्राचीन होने में सन्देह नहीं रहता तथा इसमें बहुत इधरके समयके संतोंकी वाणी, पद आदि नहीं हैं। जो कुछ हैं: प्राचीन हैं। इसमें गोरखनाथजीके प्रन्य बहुतायतसे हैं, रज्जबजीके संक्षिप्त हैं। पदोंका संग्रह विलक्षण और उत्तम है। पृथ्वीराजजी राजाके पद सबसे पहले इसी गटके में मिले हैं। पृथ्वीराजजी का समय (१५५६ से १५८४) दादूजी से पहलेका है। पदोंके ढंगसे भी वे जोगियोंकेसे प्रतीत नहीं होते। चैनजीके पदोंकी भाषा चुटीली, उत्तम. और मुहावरेदार है। क्या ये रज्जबजीके शिष्य थे ? नाटक समयसारका इसमें होना और विशेषकर बनारसीदासके पद जैन दादूपंथी. सम्बन्ध दिखाता है।
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