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________________ वताने का क्या कारण हो सकता है ? इस के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि जीव का उपयोग दोनों में से जिस अोर होगा वही चित्तसमाधि का कारण बन जाएगा। उत्पन्न होते ही यदि उपयोग केवलज्ञान मे है तो केवलजान समाधि का कारण बन जाएगा। यदि केवलदर्शन में उपयोग होगा तो केवलदर्शन समाधि का कारण बनेगा। केवलजान साकारोपयोग और केवलदर्शन निराकारोपयोग है। ब्रह्मचर्य-समाधि ब्रह्म शब्द आत्मा, परमात्मा, तप और वेद के लिये प्रचलित है, चर्य गव्द विचरण, आसेवन, अध्ययन एव निरोध अर्थ मे रूढ है। प्रात्मा जब अपने स्वरूप मे या परमात्मा के गुणो मे विचरण करता है, तप का आचरण करता है या शास्त्रो का अव्ययन करता है, तब मन स्वय ही समाधिस्थ हो जाता है, क्योकि तत्त्व-चिन्तन, मनन, श्रवण, निदिध्यासन, अनुप्रेक्षा आदि द्वारा नएनए ज्ञान में मन को लगाने से ब्रह्मचर्य के बाधक तत्त्वो का निरोध स्वय हो जाता है। ब्रह्मचर्य की प्राराधना के दो हो मार्ग है - ज्ञानमार्ग और क्रियामार्ग। ज्ञानमार्ग से जिस ब्रह्मचर्य की सिद्धि की जाती है वह समाधिजनक होता है, किन्तु क्रियामार्ग से भी ब्रह्मचर्य की रक्षा हो सकती है । जब कोई व्यक्ति किसी ऐसे कार्य मे व्यस्त रहता है जिससे काम-वासना के उदय का कभी अवसर ही नही मिलता, तब किया-समाधि की अवस्था होती है। इन दो मार्गों मे से जानमार्ग ब्रह्मचर्य की सिद्धि के लिये. सर्वश्रेष्ठ एव समाधिजनक है । क्रियामार्ग समाधि-जनक होने में वैकल्पिक है। गुप्ति और वृत्ति___ गुप्ति का अर्थ रक्षा है और वृत्ति का अर्थ है वाड । जैसे वाड योग : एक चिन्तन ] [५७
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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