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________________ समस्त लोक को जान लेने पर चित्त मे समाधि अर्थात् असीम अानन्द की अनुभूति होती है। ७. मन पर्यव-ज्ञान-ढाई द्वीप मे रहे हए संजी जीवो के । मनोगत भावो को जब ज्ञानी मन पर्यव-ज्ञान द्वारा पहली बार जान लेता है, तब ज्ञान और ज्ञेय की सफलता से उसका चित्त अपूर्व आनन्द को उपलब्धि करता है। ८. केवलज्ञान-जब किसी महान् साधक को केवलज्ञान उत्पन्न होता है, उस ज्ञान से वह सम्पूर्ण लोक-अलोक का साक्षात्कार करता है, तब सर्वतोमहान् ज्ञान और सम्पूर्ण जेय पदार्थ ये दोनो उस ज्ञानी के चित्त के लिये आनन्दवर्षक बन जाते हैं। केवल-दर्शन-जव किसी योगी को साधना के क्षेत्र में अग्रसर होते हुए केवलदर्शन उत्पन्न हो जाता है, तत्क्षण सम्पूर्ण लोक और अलोक को प्रत्यक्ष कर लेने पर वह ज्ञानी अतीव प्रानन्द की अनुभूति करता है। - १० निर्वाण-काल-जब केवली जन्म और मरण को तथा उनके मध्यवर्ती सभी प्रकार के दुखो को और क्रियमाण, सचित तथा प्रारब्ध इन कर्मो को सर्वथा क्षय कर देता है, तब सादिअनन्त अवस्था को प्राप्त करते समय जो सच्चिदानन्द की प्राप्ति होती है, वह भी एक सर्वोत्तम समाधि है ।' प्रश्न हो सकता है कि जब 'जानावरणीय कर्म और दर्शना. वरणीय कर्म एक साथ क्षय होते है और एक साथ ही केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न होते है तो इनको अलग-अलग चित्तसमाधि - १. दशाश्रुतस्कन्ध, दशा पाचवी तथा समवायाग सूत्र, समवाय १० (योग एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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