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________________ केवली भगवान सभी योगो का निरोध कर लेते हैं। योगो के निरोध से सभी क्रियाए रुक जाती हैं। तब उनका यह ध्यान सदैव ही बना ही रहता है। इस ध्यान के प्रभाव से वे यासयो का पूर्ण निरोध करके पूर्णसवर और अघाती कर्मो का सर्वथा क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर लेते है। शुक्ल-ध्यान के पहले दो भेद छमस्थ में पाए जाते है और अतिम दो भेद केवल जानी मे ही पाए जाते है । इन मे किमी भी प्रकार के श्रुतज्ञान का पालम्बन नही होता, अत ये दोनो ध्यान निरालम्बन भी कहलाते है । शुक्लध्यान के चार लक्षण - १. अव्यन - शुक्लध्यानी के मन मे या शरीर मे क्षोभ एव व्यथा का सवा प्रभाव होता है। २ असम्मोह-शुक्लध्यान मे विपयो का सम्बन्ध होने पर भी वैराग्य वल से चित्त बाहरी विषयो की ओर नहीं जाता तथा उसमे सूक्ष्म पदार्थ विषयक मूढता का अभाव होता है। ३ विवेक-शुक्लध्यान मे शरीर और आत्मा के भेद का ज्ञान होता है। ४. व्युत्सर्ग-शुक्लध्यान की अवस्था मे देह और उपधि पर स्वभावत अनासक्ति हो जाती है। शुक्लध्यान के चार पालम्बन१ क्षमा-सहन-शीलता रखना, किसी के द्वारा परीषह उपसर्ग दिए जाने पर भी क्रोध को पैदा ही न होने देना, उत्पन्न हुए क्रोध को नम्रता से, विवेक से निष्फल बना डालना। १९२] [ योग . एक चिन्तन
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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