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________________ २८. ध्यान-संवरयोग .......fototkootterta तीन योगो का सवर ध्यान से होता है, अथवा ध्यान ही संवर-योग है। सर्व प्रथम यह जानना आवश्यक होगा कि ध्यान का अधिकारी कौन है ? ध्यान का स्वरूप क्या है ? और ध्यान का कालमान कितना है ? आदि के तीन संहननो वाले साधक ध्यान के अधिकारी माने गए हैं। साधक के द्वारा किसो एक विशिष्ट विषय पर मन को एव वृत्नियो को केन्द्रित करना ध्यान है । छद्मस्थ का केन्द्रित किया हुआ मन ध्येय पर अधिक से अधिक अतर्मुहूर्तप्रमाण ही रह सकता है। __ मन की प्रवृत्तिया तीन प्रकार की होती है-भावना, अनुप्रेक्षा और चिन्ता । जिससे मन भावित है उसमे चित्त को बार-बार लगाना भावना है। ध्यान से उपराम होने पर उससे प्रभावित मानसिक चेष्टा को अनुप्रेक्षा कहते हैं । मन मे उठने वाले सकल्प की सभी तरगे चिन्ता में समाविष्ट हो जाती है। ' चल चेतना को चित्त कहा जाता है और उपर्युक्त तीन भेद चल चेतना के ही हैं। स्थिर चेतना को ध्यान कहा जाता है । चित्त अनेक वस्तुप्रो, विपयो या व्यक्तियो की ओर दौड़ता ही रहता है। चित्त को योग । एक चिन्तन ] [ १६७
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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