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में खान-पान का त्याग रखगा। . . . . . . ___आदेश-जब तक कोई मुझे पारणा करने के लिए नही कहेगा, तब तक पच्चक्खाण रखूगा।
इस प्रकार अनेको सकेत हो सकते है। इन में से कोई सा भी संकेत साधक कर लिया करते हैं। इससे खाने-पीने की बेसनी एव व्याकुलता नही बढती, नही तो साधक स्वय वस्तु के यथासमय न मिलने से व्याकुल हो सकता है, या गुस्से मे आकर यथासमय वस्तु न मिलने पर दूसरो को भी व्याकुल कर सकता है। अत पारणे वाले दिन भी सवर एव सतोष से समय-यापन करे, यही सकेत प्रत्याख्यान का उद्देश्य है। .
१० अद्धा-प्रत्याख्यान-काल को लक्ष्य मे रखकर पच्चक्खाण करना अद्धा प्रत्याख्यान है। इसके भी अनेक भेद हैं, उनके नाम और विवेचन इस प्रकार है :- .
(अ) नमस्कार-सहित-सूर्य के उदय-काल से लेकर दो घडी तक अर्थात् मुहर्त भर के लिए नमस्कार मत्र पढे बिना आहार ग्रहण नही करना । इसी का अपर नाम नवकारिसी भी है, जिस के अन्त मे नमस्कार मत्र का उच्चारण किया जाता है वह नवकारिसी है।
(आ) पौरुषी-सूर्य के उदय-काल से लेकर एक पहर दिन चढे तक सभी प्रकार के आहार का त्याग करना पौरुषी प्रत्याख्यान कहलाता है । पुरुष को छाया प्रात घटते-घटते जब अपने शरीर प्रमाण रह जाती है, तब उसे पौरुपी कहते है। पौरुषी तपे भी यथाशक्य करना चाहिए। ११०
-[ योग . एक चिन्तन