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________________ मुष्टि-मुट्ठी बद करके यह निश्चय करे कि जव , तक यह मुट्ठी नही खोलूगा, तब तक मेरा खान-पान का पच्चक्खाण है। ग्रंथि-किसी कपडे मे गाठ लगाकर मन मे निश्चय कर लेना कि जब तक गाठ नही खोलूगा, तब तक पारणा नहीं करूंगा, यह ग्रथि-सकेत-पच्चक्खाण है। गृह-मन में निश्चय कर लेना कि जब तक घर मे प्रवेश नही करू गा, तव तक तपस्या का पारणा नही करू गा। - स्वेद-मन में यह निश्चय कर लेना कि जब तक तन परं से पसीना नही सूखेगा, तब तक मेरा खान-पान का पच्चक्खाण रहेगा! - उच्छ्वास-जब तक अमुक संख्या की पूर्ति सासो से नही - होगी, तब तक खाने-पीने का त्याग रखूगा। : स्तिबुक-अमुक स्थान में पड़ी हुई पानी की वूदे जब तक सूख नही जाएगी, तब तक खाने-पीने की वस्तु का उपयोग नही करू.गा। . दीपक-जब तक. यह दीपक प्रज्वलित रहेगा, तब तक मेरा पच्चक्खाण है।, ... । । - - - - - ... .. दर्शन-जब तक गुरुदेव के दर्शन न करू गा, तब तक तपस्या का पारणा नही करू गा। 77; नित्य-नियम-जव तक अमुक मत्र का स्मरण,न कर लूगा, अमुक स्तोत्र का पाठ न कर लूगा,, अमुक ग्रन्थ का स्वाध्याय न-कर लूगा,-माला या प्रानुपूर्वी न पढ लूगा, तब तक खान-पान का उपभोग नही करू गा।:: :: : : ग्राम-जब तक उस ग्राम मे न पहुच जाऊगा, तब तक मार्ग योग : एक चिन्तन [१३९
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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