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________________ की सम्यक् आराधना हो सकती है। ३. अदत्तादान विरमण-महावत किसो की बिना दी हुई वस्तु को भूलकर भी न उठाना या वरतु के स्वामी की आजा लिये विना किसी वस्तु पर एव स्थान पर अपना अधिकार न जमाना, चोरी की सभी विधियो से विरक्त होना तीसरा महाव्रत है। यद्यपि चोरी के छोटे-बड़े अनेक भेद हैं, जैसे कि किसी की जेब कतरना, किसी का ताला खोलकर वस्तु उठाना, रिश्वत खाना, अमानत मे खयानत करना, कालाधन कमाना, किसी की दीवार मे सेध लगाना, ठग-विद्या से धन कमाना, किसी की भूमि पर पड़ी हुई वस्तु को हडप कर लेने की वुद्धि से उठाना, यात्रियो के धन-माल को लूटना, थोडा काम करके अधिक लेने की इच्छा रखना, मज़दूर से काम अधिक लेना और मजदूरी थोडी देना, किसी के लाभ मे विघ्न डालना, बिना याचना किए वस्तु का उपयोग करना, शुभ काम किया किसो और ने दूसरो को यह कहना कि 'अमुक काम ने किया है, बटवारा ठीक न करना, समय पर काम न करना, किसी वस्तु की आज्ञा ली है किसी और काम के लिए, उसका उपयोग अन्य काम मे कर लेना, ये सब चोरी के ही नाना रूप हैं। चोरी की सभी विधियो एव भेदो से पूर्णतया निवृत्ति पाकर जीवन भर के लिए मन, वचन, काया से न स्वय चोरी करना, न दूसरे से चोरी कराना और न चोरी करने वाले का समर्थन ही करना "अदत्तादान-विरमण महाव्रत" है। . ___ यद्यपि छोटी-बड़ी चोरियो के अनगिनत भेद हैं, तथापि शास्त्रकारो ने उन सब को चार भागो में विभक्त कर दिया है, जैसे कि-द्रव्य-चोरी, क्षेत्र चोरी, काल-चोरी, और भाव-चोरी। योग एक चिन्तन] [११७
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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