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• श्री तिलकधर शास्त्री
योग एक चिन्तन : मेरी अनुभूति
"योग एक चिन्तन" जब यह गीर्षक मैंने पढा तो मैंने अपनी पूर्व धारणा के अनुसार यही समझा कि प्रस्तुत पुस्तक मे 'योगसाधना' कैसे की जाय ? इसका ही विशद विवेचन होगा, परन्तु जैसे ही "वत्तीसं जोग संगहा पण्णत्ता" पढ कर बत्तीस योगो के नाम पढे तो तुरन्त मेरो धारणा बदल गई और मै एक अन्य दृष्टिकोण लेकर पुस्तक का स्वाध्याय करने लगा। पढ़ते-पढते जहां पहुचा हू वह अत्यन्त अद्भुत है-अानन्दकारी है और जो अन्यत्र संक्षेप मे है यहां उसे विस्तार मे पाया और साथ ही सर्वत्र जो अनेय और अबूझ रहा वह यहा प्राकर नेय और स्पष्ट हो गया। ` 'योग' शब्द ने कव कहा से अर्थबोध की यात्रा प्रारम्भ की है ? और इस शब्द से किसने क्या समझा है ? यह कहना अत्यन्त कठिन है, क्यो.क व्यान-योग, कर्म-योग, हठ योग, अध्यात्म-योग साख्य योग, ज्ञान-योग आदि शब्दो मे योग शब्द अलग-अलग अर्थों का बोध करा रहा है। - - , “ योग शब्द के अर्थ जानने से पहले इसका इतिहास जानना आवश्यक होगा, किन्तु योग शब्द के अर्थ-ज्ञान के विना इतिहास का जानना असम्भव होगा, अत सर्वप्रथम योग शब्द के अर्थ पर थोडा विचार कर लेना चाहिये, जिससे पुस्तक का समग्र विषय वोध-गम्य हो सके। योग एक चिन्तन ]
[ग्यारह