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________________ राजमार्ग सबके लिए हित कर एव श्रेयस्कर होता है, वैसे ही तीर्थंकर भगवान का बताया हुमा साधना - मार्ग राजमार्ग है । सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र इन तीनो का समन्वित पथ ही मोक्षमार्ग है । इस राज मार्ग को छोड़कर जो भूलकर भी अन्य मार्ग की चाहना नही करता, वही धृतिमति का उपयोग कर सकता है, धृतिमति की स्थिति को हो दूसरे शब्दो मे स्थितप्रज्ञता कहा जाता है । स्थितप्रज्ञ साधक ग्राचार विचार मे सयमतप मे सवर- निर्जरा मे सदैव ग्रडिग रहता है । भयकर उपसर्गो के उपस्थित होने पर भी ध्यान और समाधि मे स्थिर रहता है । उसकी धीरता के सामने दिव्य शक्तिया भी पराजित होकर नत मस्तक हो जाती हैं । बुद्धि मे धैर्य का होना यह प्रमाणित करता है कि उसके विचारो का स्रोत सम्यग्दर्शन से विशुद्ध है मिथ्यात्व की मलिनता से रहित है । मन मे धैर्य का होना यह सिद्ध करता है कि साधक की श्रद्धा एव विश्वास दृढ है । शरीर मे रहा हुआ धैर्य साधक को किसी प्रकार के भय और प्रलोभनो द्वारा मर्यादा से विचलित नही होने देता । यदि तीनो में धैर्य है तो वह साधक उच्चकोटि का महात्मा है । हठ और धैर्य मे अन्तर अपनी अनुचित एव गलत बात पर ग्रडे रहने की प्रवृत्ति को हठ कहा जाता है । सत्यग्राही होना या सत्य पर आग्रह करना धैर्य है । जिस कार्य या विचार से अपना और दूसरो का भला हो, उस कार्य या विचार पर दृढ रहना धैर्य है, जिससे सबका हित एव सुख नष्ट हो रहा हो ऐसे विचार या कार्य पर मोह-वश प्रटल रहना हठ है । धैर्य होना चाहिए, हठ नही । कहा भी है "धैर्य धर्म मित्र अरु नारी, श्रापत-काल परखिए चारी ।" योग एक चिन्तन ] [ 59
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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