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________________ तो मन से भी धैर्य धृति शब्द अनेक अर्थो की अभिव्यक्ति के लिये प्रयुक्त होता है जैसे कि धारण करने को या पकडने की क्रिया या उतावलापन न करने का भाव ज्ञात विषय का अविस्मरण । प्रमगानुसार इस शब्द के ये सब अर्थ ग्रहण किये जाते है । धैर्य मन मे, शरीर मे तथा बुद्धि मे भी होता है । बुद्धि मे धैर्य है तो शरीर मे भी है, यदि शरीर मे है का होना निश्चित है । इस प्रसग मे धृति विषय का अविस्मरण' ही इष्ट है । मति का नर नाम धृतिमति भी है, क्योकि वृति का सम्बन्ध मति के साथ जुड़ा हुग्रा है । उपयोग अर्थात् चित्त वृत्तियो का एक विपय पर निरन्तर स्थिर रहना ही धृतिमनि है । इसका सीधा सम्बन्ध ग्रनुप्रेक्षा से है । गहन विचार, स्वाध्याय या ग्रनुसन्धान वृति-मति के विना असम्भव ही है । शव्द का अर्थ 'ज्ञात ****** १६ धृतिमति जिस व्यक्ति की वृद्धि धैर्य-प्रधान होती है उसके जीवन में दीनता की अभिव्यक्ति कभी नही हो सकती, क्योकि धैर्य का निवास शरीर, मन और बुद्धि मे ही होता है । जिसको बुद्धि मे धैर्य होता है वह मिथ्यादृप्रियो एव एकान्तवादियों की भ्रान्त धारणाओ के जाल - जजाल में कभी नहीं फस सक्ता, वह कुमार्गो की पगडडियो मे कभी नही भटकता । राजा की ओर से बना हुआ जैसे योग एक चिन्तन ] ५० 1
SR No.010605
Book TitleYog Ek Chintan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
PublisherAtmaram Jain Prakashan Samiti
Publication Year1977
Total Pages285
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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