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बांकीदासरी ख्यात
[ ९०३-९१२
वीरसिंघजी ज्यांरै
"बहादुरसिंघजी
९०३ सूरसिवजी हाथा चीरो लियो - बंदोवस्तमें हीज रह्या वेटा अमरसिंघजी कीरकेर्डो छोटा बेटा सूरतसिंघजी ' किसनगढ राज वावियो भाटियाँरी साखलारी, जोइयांरी, मोहेलारी, राठारी जमी वीकानेर हेठे दीवी ।
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बहादुरसिंघ
९०४ किसनगढरा राजा बहादुरसिंघजी लवाणरा वीकावतारा भाणेज हुता । ९०५. हिन्दुस्थानी मुसलमान और मरहठा मुजरो सलाम करता जद वहादुरसिंघजी माथै हाथ लगावता |
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९०६. वहादुरसिंघजी नागोरी धमाको खवामे रहतो लोहरी मूठ लोह रातै नाळरी तरवार गलडवै रहती अधोडीरो गलडवो रहतो. नव पलारो मीथों रहतो दम पलारो लवायचो रहतो जाडी पीडिया ताई काछ रहती ।
९०७ महाराज वखतसिंघजी जोधपुर ले सिणगारचौकी विराजिया जद घाघळ कनैसू चवर ले वहादुरसिंघजी चवर करण लागा देवीसिहजी चाप अरज कीवी - बहादुरसिंघजीरी निगाह कीजै जद राजाधिराज वहादुरसिंघजीरो हाथ पकड वहादुर सिंघजीने बैठाया ।
९०८ गाजूदीनखा नबावरे सामा कोस महाराज वहादुरसिंघजी पधारिया किसनगढ दीचाणखानामे गाडी मायँ गाजू दीनखा बैठो, बिछायत मायै बहादुरसिंघजी वैठा महाराज चत्ररी हाथ मे लीत्री जद गाजूदीनखा पाल दिया । ९०९ महाराज वहादुरसिंघजी फुरमावता - गाजूदीनखा सरीखो सहूरदार जावनी भासा मे प्रवीण दीठो नही ।
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९१० सवत १८३८ बहादुरसिंघजी देवलोक हुवा जद विरदसिंघजी चाळीस वरसमे हुता, प्रतापसिंघजी २१ वरसरी वयमें हुता ।
९११. किसनगढ राजा वहादुरसिंघजी पाच वेटी- गुलावकवर नरखररा राजानूं परणायी १, अखैकुवर बूदी अजीतसिंघजीनू परणायी २, रूपकवरबाई जेसलमेर रावळ मूळराजजीनू परणायी 3, वार्ड ओक उदैपुर राणा अड़सीजीनू परणायी ४, बाई ओक देवळिये दिवाण सावतसिंघजीनूं परणायी ५ ।
विड़दासंघ
९१२ किमनगढ विदभिघजीरै च्यार वेटी हुई - येक उदैपुर राणा अडसीजीर कुंवर हमीरसिंघनू परण यी १, जेक जेसळमेर रावळ मूळसजजीरा कुवर रावजीनू परणायी २, ओक वणहडै राजा हमीरसिघजीनूं परणायी ३ |