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________________ २००] वांकीदासरी ख्यात [२४४६-२४६२ २४४६ राजा सागर पुत्रासू घापो नही । २४४७. रामचद्र दस हजार वरस राज कियो। २४४८. पुराण लिखे है - आनै ग्यानवापीरो जळ आगला जुगांमे कासीमे लोक पीवता आमें ग्यानलिंग प्रगटी लोक त्रिभग हो जातो। २४४६ पुराणमें कळपातर मान. पूरव मीमांसामे होणहार मान. वेदातमे ईश्वरेच्छा मान । २४५०. वेदातमे वावन मत है ज्यामें अद्वैतवाद प्रवळ है । २४५१. अद्वैतवादी चक्रवर्ती कहावै । २४५२ सोयगकार यथा सोय देवदत्त । २४५३. नैयायिक भनित मान सव्दनू । २४५४. सेय दीपज्वाळा स्मद स्यात् दीसै न तु वास्तव । २४५५ मीमांसक वैयाकरण सव्दनू नित्य माने । २४५६. न्यायरा प्राचीन पडितोरा मतमे नै आधुनिक पडितारा मतमे फरक है । २४५७. दक्षिणात्याका न्याय, मैथिलूका न्याय, बंगालियूका न्यायमे कही-कही फरक है। २४५८ वनमे आठ वरसरो खोडो ब्रामणरो डावडो आयो उण समै सिविकारूढ समाज समेत कुमारळ भट्ट उण वनमे आय निसरिया, इण डावडासू पूछियो गाव अठासू नेडो है के दूर है ? जद ओ बोलियो - हू वालक छु , खोडो छ , वकरिया वित्त है, दिन किंचित आय रह्यो है, गाव अति नेडो है जिणसू अजे वनमें खडो छ, अकलस लोक ईश्वरने जाण है, मोनू वनमें खडो देख गाव अति नेडो जाण लेणो. इण डावडान कनै राख पढाय भट्ट प्रभाकर नाम दियो इणरो कुमारळ भट्ट। २४५६ कवीर सवत पनरासमे हुवो, दादू पहला सौ वरसा पातसाह सिकदरनूं परचो दियो। जैन-धर्म २४६०. जिनागममे कह है - सत्रुजा ऊपर दस कोड मुनिराज काती सुद १५ सीधा । २४६१. सारी तीरथामें आमाक श्रेष्ठ तीरथ है। २४६२. जिन प्रतिमा जिन सरावी, कही जिनागम मांहि । ये जाके दूखन लगे, वदनीय सो नाहि ।।
SR No.010598
Book TitleBankidasri Khyat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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