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________________ ૫૮ } वांकीदासरी स्यात [ १७४५-१७५९ १७४५ श्रीजी साहब देव पूजता आ निसचै नही, आरै मुख इस्ट कुण देवता है ? अक दिन रगनाथजीनू श्रीजी पुसप चढावे है, पोतो रावराजा छानो थको लारै ऊभो जद दुरगारो मत्र पढ नै श्रीजी तुळसी दल रंगनाथजीनू चढायो पर्छ देखे तो पोतो ऊभो है जद फुरमाया - भगतियाने मंत्र सुणियो कांई ? आ अरज किवी - सुनियो आप फुरमाया - विखामे में ओ इस्ट धारण कियो हो, पाचूही देव अक करि जाणां छा । १७४६ उमेदसिंघजीरै आठ राणिया हुई । १७४७ रावराजा उमेदसिंघजीरा कवर अजीतसिंघजी, वहादुरसिंघजी दोनू रासरो धणी ऊदावत केसरीसिंघजी जिणरा भाणेज । १७४८ अजीतसिंघजी, वहादुरसिंघजी दोनू रावराजा उमेदसिंघजीरा बेटा रासरा ऊदावत केसरीसिघजीरा भाणेज । १७४९ वळवतसिंघजी वहादुरसिंघजीरो बेटो केसोरायजी पाटण कोटा वाळा चूक कर मारियो । १७५० उमेदसिंघजीर बेटा मिरदारसिंघजी, रायसिंघजी ईडररा धणी जिणरा दोहिता । १७५१ रावराजा अजीतसिंघ उमेदसिंघोत वांसवाळारा रावळरो दोहितो । १७५२ हाडै रावराजा अजीतसिंघ अड़सी राणानू मारियो सो प्रसग लिखते. लालस पीरदान कह्यो हुई सर चेलो अल्लारो वारटनू । १७५३ अजीतसिंघजीरी वूहरे यी वरछी दे मारियो सू राणारी पीठ फोड़ छाती फोड़ घोडाका धेरै आणी वरछी लागा राणो बोलियो कीका लागां. जद की धाभाई अजीतसिंघजी माथै तरवार चलायी अजीतसिंघजीरो कमरaat कट चीलगत कट अजीतसिंघजीरै पसवाडारै खाणी । १७५४ अजीतसिंघजीरी तरवारसू कीकारा घोड़ारो पग कटाणो । १७५५ रावराजा पदवी अजीतसिंघजी तीन वरस भोगवी पछै राम-सरण हुवा | १७५६ रावराजा विसनसंघ वासवाळारा रावळरो दोहितो । १७५७ रावराजा रामसिंघ विसनसिंघोत किसनगढरा राजा प्रतापसिंघ वहादुरसिंघोतरो दोहितो । १७५८. हाडो हालू हरराजरो आंरै रजपूत हुवो । १७५९ वूदी डावी मिसल नाथावतां सोळकियारी जीवणी मिसल हाडारी ।
SR No.010598
Book TitleBankidasri Khyat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNarottamdas Swami
PublisherRajasthan Puratattvanveshan Mandir
Publication Year1956
Total Pages233
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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