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१७३७-१७४४]
चौहाणारी वातां १७३७. ईसरीसिंघजी पाट बैठा जद हाडा रावराजा उमेदसिंघजी बूदीमे अमल कर
जैपुररो नायब नारायणराव जिणसू जग कियो पैली जैपुररी फौज भागी पछै उणियारारै रावराजा सिरदारसिंघजी घोडारी वाग उपाडी उमेदसिंघ
रावराजारो लोक काम आयो, पग हाडारा छूटा. घोडो· · · · · रावराजा
. उमेदसिंघजीरो काम आयो । १७३८ उमेदसिंघजी तेरै घोडासू इदरगढ गया देवीसिंघ इदरगढरो धणी सत्रु
वहे निवडियो बूदी अपणाय देवीरी पूजारै मिस कबीला सहित इणनू
उमेदसिघ मारियो । १७३९. विखा माहे रावराजा उमेदसिघजी हा जद ईडरिया राठोडा डोळो मेलियो.
ओ पैलो व्याव उमेदसिंघजी कियो । १७४० श्री जी उमेदसिंघजी देसूरी सैल करण पधारता जद भमरा वा कीपलारी
कावड़ा जळेब वैती गावरा डावडा मागता ज्यानै कीपला भमरा दिरीजता। १७४१ सिलामयीरो नै गोविंददेवजीरो दरसण कुंवर उमेदसिंघजी जैपुर पधारिया.
महाराज प्रतापसिंघजी सामा पधारिया सनान कर अपर्समे होय गोविंददेवजीरो दरसण कियो फूल ठाकुरजीनू चढावण श्री जी वागमें गया, साथ महाराजा प्रतापसिंघजी जद श्रीजी आकोडियासू वक्षरी डाळ नमायी, फल प्रतापसिंघजी वीण लिया जद श्रीजी बोलिया कयाहीक दिना फल भुगतियो वीण तो प्रतापसिंघजी कह्यो - म्हारै तो आप ईसरीसिंघजी माधोसिघजीरै
ठिकाणे हो। १७४२ कापणरो महाराजा दीपसिंघजी जिकारी बेटी प्रतापसिंघजी परणिया श्रीजीरै
भतीजी जिणसू मिलण श्रीजी जैपुररा रावळामे पधारिया. प्रतापसिंघजीरी राणिया सरबनै उमदा पौसाक दिवी सारी राणिया श्रीजीरो दरसण
कियो छोटा भाईरी बेटीरै माथै हाथ फेरियो। १७४३ प्रतापसिंघजी श्रीजीरै डेरै आय कह्यो - आप कहो तो कोटा-बूंदी माथै '' - फौज ले हू आपरै सग चालू श्रीजी कह्यो - इण कामसू तो म्हारा धोळामें
धूळ पडै, दोनू ठिकाणा दोनू म्हारा पोता है जिका माथै काई कोप करू ? “१७४४
पूरबरा तीरथ कर श्रीजी बूदी पधारिया जद केदारनाथजी कनै आपरा डेरा उठासू प्यादल थका काधै गगाजळरी कावड लिवी, पगामे खडाऊ, हाथमें
आसो सरब परिगह सहित रगनाथजीरै मदिर पधारिया रगनाथजीनूं . गगा-जळ चढावणनू ।