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व्यक्तित्व और कृतित्व "सत्संग की महिमा वहुत बड़ी है । यह सत्संग का ही प्रभाव है कि कमल के पत्ते पर पड़ी हुई जल की वूद मोती-सी झलक पा लेती है। प्राचार्य कहते हैं कि-'यह साधारण-सी स्तुति भी आपके सम्वन्ध के प्रभाव से सत् पुरुपों के मन को हर लेगी, उत्कृष्ट रचनाओं में स्थान पाएगी।' आचार्य की भविष्य-वाणी सर्वथा सत्य ही प्रमाणित हुई। हजार वर्ष पाए और चले गए । भक्तामर, आज भी भक्तों के हृदय का हार बना हुआ है।"
"जब कि सूर्य की प्रातःकालीन अरुण प्रभा से ही कमल खिल जाते हैं, तो सूर्य के साक्षात् उदय होने पर क्यों न खिलेंगे ? अवश्य खिलेंगे। प्राचार्य कहते हैं कि-'भला जव आपके नाम के उच्चारण मात्र से पाप नष्ट हो जाते हैं, तो स्तुति से तो अवश्य होंगे ही।"
___ कल्याण मन्दिर-कल्याण मन्दिर' आचार्य सिद्धसेन दिवाकर की कृति है। इसमें भगवान् पार्श्वनाथ की स्तुति की गई है, इसमें चौवालीस पद्य हैं । इसकी भाषा प्रोजपूर्ण संस्कृत है। कवि श्री जी ने 'कल्याण-मन्दिर स्तोत्र' का सरल हिन्दी में अनुवाद किया है और विशेप स्थलों पर मार्मिक टिप्पण भी दिए हैं । मैं कुछ टिप्पण यहाँ पर उद्धृत कर रहा हूँ
"प्राचार्य ने उल्लू के बच्चे का उदाहरण बड़ा ही जोरदार दिया है । उल्लू खुद ही दिन में अन्धा रहता है और फिर उसके बच्चे की अन्धता का तो कहना ही क्या है ! अस्तु, उल्लू का वच्चा यदि सूर्य के रूप का अधिक तो क्या, कुछ भी वर्णन करना चाहे, तो क्या कर सकता है ? नहीं कर सकता । जन्म धारण कर जिसने कभी सूर्य को देखा ही न हो, वह सूर्य का क्या खाक वर्णन करेगा ? प्राचार्य कहते हैं कि'भगवन् ! मैं भी मिथ्या-जान रूपी अन्धकार से अन्धा होकर आपके दर्शन से वंचित रहा हूँ। अतः आपके अनन्त ज्योतिर्मय स्वरूप का भला क्या वर्णन कर सकता हूँ? आप 'जान-सूर्य' और मैं 'अज्ञानान्ध उलूक'दोनों का क्या मेल ?"
"संसार में देखा जाता है कि प्रायः क्रोधी मनुष्य ही अपने शत्रुओं का नाश करते हैं । जो लोग क्षमा शील होते हैं, उनसे किसी