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स्तोत्र-साहित्य जैन-साहित्य में स्तोत्र-साहित्य भी एक विशाल साहित्य है। जैन आचार्यों ने आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर बहविध स्तोत्रसाहित्य की रचना की। स्तोत्र-साहित्य की भाषा प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी, अपभ्रश और विभिन्न प्रान्तीय भाषाएँ रही हैं। स्तोत्र-साहित्य का विपय विशेषतः तीर्थङ्कर, गणधर एवं संयमी साधुजन रहे हैं। परन्तु विभिन्न देवी-देवताओं को लेकर भी स्तोत्रों की रचना हुई है।
स्तोत्र-साहित्य में कुछ स्तोत्र बहुत ही प्रसिद्ध हैं । जैसे कि-भक्तामर, कल्याणमन्दिर, वीर स्तुति और उपसर्ग-हर स्तोत्र । इन स्तोत्रों के सम्बन्ध में जैन-जनता के मन में अत्यन्त श्रद्धा और गहन निष्ठा के भाव हैं। कवि श्री जी ने भक्तामर, कल्याणमन्दिर, वीरस्तुति और महावीराष्टक स्तोत्र का सरल अनुवाद और विशेप स्थलों पर बड़े ही मार्मिक टिप्पण लिखे हैं। प्राचार्य अमितगति कृत 'अध्यात्म बत्तीसी' का भी जो कि संस्कृत में है, सरल हिन्दी अनुवाद करके स्वाध्याय प्रेमी पाठकों का महान् उपकार किया है । कवि श्री जी के यह अनुवाद समाज में बहुत प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय सिद्ध हुए हैं ।
भक्तामर-यह स्तोत्र आचार्य मानतुंगकृत है। इसकी भाषा सरल और सुवोध संस्कृत है प्राचार्य ने अड़तालीस श्लोकों में भगवान् ऋषभदेव की स्तुति की है। कवि श्री जी ने इसका सरल अनुवाद हिन्दी में किया है और विशेष स्थलों पर टिप्पण भी लिखे हैं । ये टिप्पण बड़े ही मार्मिक एवं विचारपूर्ण हैं । उदाहरण के लिए पाठकों के समक्ष दो टिप्पण रख रहा हूँ