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प्रतिक्रमण सूत्र । । चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा ।
सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसंतु ॥ ७ ॥ अन्वयार्थ - चंदेसु' चन्द्रों से निम्मलयरा' विशेष निर्मल, 'आइच्चेसु 'सूर्यों से भी अहियं ' अधिक ‘पयासयरा' प्रकाश करने वाले [ और ] 'सागरवरगंभीरा ' महासमुद्र के समान गम्भीर · सिद्धा' सिद्ध भगवान् 'मम' मुझको - सिद्धि' सिद्धि-मोक्ष - दिसंतु ' देवें ॥ ७ ॥
भावार्थ - ( भगवान् से प्रार्थना ) जिनकी मैंने स्तुति की है, जो कर्ममल से रहित हैं, जो जरा मरण दोनों से मुक्त हैं, और जो तीर्थ के प्रवर्तक हैं वे चौबीसों जिनेश्वर मेरे पर प्रसन्न होउनके आलम्बन से मुझमें प्रसन्नता हो ॥ ५॥
जिनका कीर्तन, वन्दन और पूजन नरेन्द्रो. नागेन्द्रों तथा देवेन्द्रों तक ने किया है, जो संपूर्ण लोकमें उत्तम हैं और जो सिद्धि को प्राप्त हुए हैं वे भगवान् मुझको आरोग्य, सम्यक्त्व तथा समाधि का श्रेष्ठ वर देवें-उनके आलम्बन से बल पाकर मैं आरोग्य आदि का लाभ करूँ ॥ ६ ॥
सिद्ध, भगवान् जो सब चन्द्रों से विशेष निर्मल हैं, सब सूर्यों से विशेष प्रकाशमान हैं और स्वयंभूरमण नामक महासमुद्र के समान गम्भीर हैं. उनके आलम्बन से मुझ को सिद्धि-मोक्ष प्राप्त हो ॥७॥
चन्द्रभ्या निर्मलतरा आदित्येभ्योऽधिकं प्रकाशकराः । सागरवरगम्भीराः सिद्धाः सिद्धिं मम दिशन्तु ॥ ७ ॥
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