________________
२२८
प्रतिक्रमण सूत्र ।
गिरि नाम गुण- खानी, जग पुण्यवंत प्राणी ॥५॥ गिरि० ॥ सहस्र कमल सोहे, मुक्ति निलय मोहे | सिद्धाचल सिद्ध ठानी, जग० ॥२॥ गिरि ० ॥ शतकूट ढंक कहिये, कदंब छांह रहिये । कोड़ि निवास मानी, जग० || ३ || गिरि ० ॥ लोहित ताल ध्वज ले, ढंकादि पांच भज ले । सुर नर मुनि कहानी, जग० ॥४॥ गिरि ० ॥ रतने खान बूटी, रस कुंपिका अखूटी । गुरुराज मुख बखानी, जग० ॥५॥ गिरि ० ॥ पुण्यवंत प्राणी पावे, पूजे प्रभुको भावे । शुभ 'वीरविजय' वाणी, जग पुण्यवन्त प्राणी ॥ ६ ॥ गिरि ० ॥
[ श्रीसिद्धाचलजी की स्तुति । ] पुंडरगिरि महिमा, आगममां परसिद्ध, विमलाचल भेटी, लहीये अविचल रिद्ध । पंचम गति पहुंता, मुनिवर कोड़ाकोड़, इण तीरथ आवी, कर्म विपातक छोड़ ॥ १ ॥ पुंडरीक मंडन पाय प्रणमीजे, आदीश्वर जिनचंदाजी, नेमि विना वीश तीर्थकर, गिरि चढ़िया आणंदाजी । आगम मांहे पुंडरीक महिमा, भाख्यो ज्ञान दिणंदाजी, चैत्री पूनम दिन देवी चक्केसरी, 'सौभाग्य' दो सुखकंदाजी | १ |