________________
२०४
प्रतिक्रमण सूत्र ।
सिद्धा" पूर्वक चौथी थुइ कहे । पीछे बैठ कर "नमुत्थुणं" कहे बाद चार खमासमण देवेः - (१) इच्छामि खमा ० "भगवानहं", (२) इच्छामि खमा० " आचार्यहं ", (३) इच्छामि खमा ० “उपाध्यायहं”, (४) इच्छामि खमा० “सर्वसाधुहं" । इस प्रकार चार खमासमण देने के बाद "इच्छाकारि सर्वश्रावक वांदु" कह कर “इच्छा०, देवसिय पडिक्कमणे ठाउं ? इच्छं' कह कर दाहिने हाथ को चरवले वा आसन पर रख करे बायां हाथ मुहपत्ति - सहित मुख के आगे रख कर सिर झुका " सव्वस्सवि देवसिअं" का पाठ पढ़े । बाद खड़ा हो कर "करेमि भंते, इच्छामि०, ठामि०, तस्स उत्तरी, अन्नत्थ ऊससि ०" कह कर आचार की आठ गाथाओं [ जो गाथाएँ न आती हों तो आठ नवकार ] का कायोत्सर्ग कर के प्रकट लो - गस्स पढ़े | बाद बैठ कर तीसरे आवश्यक की मुहपत्ति पडिलेह कर द्वादशावर्त्त-वन्दनी देने के बाद खड़े खड़े " इच्छाकारेण
१ - इस प्रकार की सब क्रियाओं का मुख्य उद्देश्य गुरु के प्रति विनयभाव प्रगट करना है, जो कि सरलता का सूचक है ।
२ - इस के द्वारा दैनिक पाप का सामान्यरूप से आलोचन किया जाता है; यही प्रतिक्रमण का बीजक है, क्यों कि इसी सूत्र से प्रतिक्रमण का आरम्भ होता है।
३–यहाँ से ‘सामायिक' नामक प्रथम आवश्यक का आरम्भ होता है । ४— इस में पाँच आचारों का स्मरण किया जाता है, जिस से कि उन के
संबन्ध का कर्तव्य मालूम हो और उन की विशेष शुद्धि हो ।
५–यह ‘चउवीसत्थो' नामक दूसरा आवश्यक है।
६- यह 'वन्दन' नामक तीसरा आवश्यक
है
1