________________
विधियाँ ।
२०३ पीछे "ज किंचि" और "नमुत्थुणं" कह कर खड़े हो कर "अरिहंत चेइआणं, अन्नत्थ ऊससिएणं" कह कर एक नवकार का काउस्सग्ग करे । कायोत्सर्ग पार के "नमोऽहत्" पूर्वक प्रथम थुइ कहे । बाद प्रगट लोगस्स कह के "सव्वलोए, अरिहंत चेइयाणं, अन्नत्थ" कहे । एक नवकार का कायोत्सर्ग पार कर दूसरी थुइ कहे । फिर "पुक्खरवरदी' कह कर “सुअस्स भगवओ, करेमि काउस्सग्गं, वंदणवत्तिआए, अन्नत्थ' कहने के बाद एक नवकार का कायोत्सर्ग करे। फिर उसे पार के तीसरी थुइ कह कर "सिद्धाणं बुद्धाणं, वेयावच्चगराणं, अन्नत्थ ऊससिएणं" का पाठ कह कर एक नवकार का कायोत्सर्ग पार के "नमोऽर्हतकी जाती है, इस लिये यह द्रव्य-अरिहन्तों का वन्दन है। 'अरिहंत-चेइयाणं.' तीसरा आधिकार है । इस के द्वारा स्थापना-जिन को वन्दन किया जाता है । 'लोगस्स' चौथा अधिकार है । यह नाम-जिन की स्तुति है। 'सव्वलोए.' पाँचवाँ अधिकार है। इस से सव स्थापना-जिनों को वन्दना की जाती है । 'पुक्खरवर सूत्र की पहली गाथा छटा अधिकार है। इस का उद्देश्य वर्तमान तीर्थङ्करों को नमस्कार करना है। तम-तिमिर से ले कर 'सिद्ध भो पयओ.' तक तीन गाथाओं का सातवाँ अधिकार है, जो श्रतज्ञान की स्तुतिरूप है। 'सिद्धागं बुद्धाणं' इस आठवें अधिकार के द्वारा सब सिद्धों को नमस्कार किया जाता है, जो देवाण.' इत्यादि दो गाथाओं का नववाँ अधिकार है। इस का उद्देश्य वर्तमान तीर्थाधिपति भगवान् महावीर को वन्दन करना है। 'उज्जित' इस दसवें अधिकार से श्रीनेमिनाथ भगवान् की स्तुति की जाती है। 'चत्तारि अट्ठ० इस ग्यारहवें अधिकार में चौबीस जिनेश्वरों से प्रार्थना की जाती है। 'वेयावच्चगराणं' इस बारहवें अधिकार के द्वारा सम्यक्त्वी देवताओं का स्मरण किया जाता है । देववन्दन-भाष्य, गा० ४३-४५]।