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प्रतिक्रमण सूत्र ।
नहीं, किन्तु भङ्ग है । अतिचार का मतलब इस प्रकार है:____ मंजूर करने से धन-धान्यपरिमाणातिचार लगता है । जैसे स्वीकृत परिमाण के उपरान्त धन-धान्य का लाभ देख कर किसी से यह कहना कि तुम इतना अपने पास रखो। मैं पीछे से-जब कि व्रत की कालावधि पूर्ण हो जायगी-उसे ले लूँगा अथवा उस अधिक धन-धान्य को बाँध कर किसी के पास इस बुद्धि से रख देना कि पास की चीज कम होने पर ले लिया जायगा, अभी लेने में व्रत का भङ्ग होगा; यह धन-धान्यपरिमाणातिचार है। __मिला देने से क्षेत्र-वास्तुपरिमाणातिचार लगता है । जैसे स्वीकृत संख्या के उपरान्त खेत या घर की प्राप्ति होने पर व्रत-भङ्ग न हो इस बुद्धि से पहले के खेत की वाढ़ तोड़ कर उसमें नया खेत मिला देना और संख्या कायम रखना अथवा पहले के घर की भित्ती गिरा कर उसमें नया घर मिला कर घर की संख्या कायम रखना; यह क्षेत्र-वास्तुपरिमाणातिचार है।
सौंपने से सुवर्ण-रजतपरिमाणातिचार लगता है । जैसे कुछ कालावधि के लिये सोना-चाँदी के परिमाण का अभिग्रह लेने के बाद बीच में ही अधिक प्राप्ति होने पर किसी को यह कह कर अधिक भाग सौंप देना कि मैं इसे इतने समय के बाद ले लूंगा, अभी मुझे अभिग्रह है; यह सुवर्ण-रजतपरिमाणातिचार है।
नई घड़ाई कराने से कुप्यपरिमाणातिचार लगता है । जैसे स्वीकृत संख्या के उपरान्त ताँबा, पीतल आदि का बर्तन मिलने पर उसे लेने से व्रत-भङ्ग होगा इस भय से दो बर्तनों को भँगा कर एक बनवा लेना और संख्या को कायम रखना; यह कुप्यपरिमाणातिचार है। . गर्भ के संबन्ध से द्विपद-चतुष्पदपरिमाणातिचार लगता है। जैसे स्वीकृत कालावधि के भीतर प्रसव होने से संख्या बढ़ आयगी और व्रत-भङ्ग होगा इस भय से द्विपद या चतुष्पदों को कुछ देर से गर्भ ग्रहण करामा जिससे कि व्रत की कालावधि में प्रसव होकर संख्या बढ़ने न पावे और कालावधि के बाद प्रसव होने से फायदा भी हाथ से न जाने पावे; यह द्विपद-वतुष्पदपरि. माणातिचार है । [ धर्मसंग्रह, श्लोक ४८ ]