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२ प्रतिक्रमण नवकार मंत्र वैसा ही है केवल 'आयरियाणं' के बदले 'आइरियाणं' बोलते हैं । 'इरियावहिया' 'तस्स उत्तरी' के पाठ भी कुछ अन्तर के साथ उसी प्रकार हैं। 'लोगस्स' का पाठ इस तरह है
'लोयरसुजोयरे, धम्मतित्थंकरे जिणे वंदे ।
अरिहंते कि तिस्से, चवीसं चेत्र केवलिणो ॥'
'उसह मजियं ० ' शेष उसी प्रकार । 'सुविहिं०' वाली गावामें 'सिजंग' के ग्यानपर 'सेयंस' है । 'च जिणं' के स्थानपर 'भय' है। 'कुंभुं च जिणवरिंदें, अरे च मि च सुव्वयं च नमिं ।' शेष तद्वत है । 'लोगस्स उत्तमा' की जगह 'लोगुतमा जिणा सिद्धा' है । 'आरोगणाणलाहं, दिंतु समाहिं च मे मोहिं | वंदेहं निम्मलयण, आइ
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हिं अहियं पयासंता । सायरमिव गंभीरा, सिद्धा सिद्धिं मम दिसेतु ॥' आदिमें थोड़ा सा अंतर है । 'चत्तारि मंगलं' का पाठ उसी भांति है । १२ कि अतिचार भी मिलते जुलते हैं । 'खामेमि सच्चे जीवा० ' के स्थानपर 'सम्मामि रावजीवाणं, सव्वे जीवा खमंतु मे । मेती मे सव्वभूदेसु, वेरं मज न केणयि ॥'
'धम्मो मंगलमु कि० ' की जगह 'धम्मो मंगलमुहिं, अहिंसा जो नयो । देवा वि तस्स पणमंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥'
४ 'जयं चरे जयं चिट्ठे, जयमासे जयं सए । जयं भुजतो भासतो, पावकम् न बंधइ ॥ ८ ॥' की जगह 'जदं चरे जदं विद्वे, जदमासे जदं गये । जयं भुजेल भासेज्ज, एवं पावं न बज्झइ ॥ ( मूलाचार )
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(नोट) और भी बहुतसे पाठोंमें साम्यता है। विशेषके लिए वरीय श्रावक प्रतिक्रमण देखें । इसके अतिरिक्त दिगंबरोंके कई ग्रंथोंमें 'मुमागमे के पार्टीका अनुकरण है।
वैदिक
१ 'एगं जाणइ से सम्बं जाणा' - 'आत्मनि विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञानं भवति' । २ 'अप्पा सो परमप्पा' - 'अयमात्मा ब्रह्म' 'अहं ब्रह्मास्मि' 'तश्वमांस' ।
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६ 'तक्का जत्थ ण विज्जई, मई तत्थ ण गाहिया' 'यतो वाचो निवर्तते, अप्राप्य मनसा सह ।
३ ' गाणे पुण णियमा आया' - 'प्रज्ञानं ब्रह्म' ।
४ ' अपुणरावित्ति' - ' न पुनरावर्तते' ( यद्गत्वा न निवर्तते
५ एगे आया' - 'एकोsहं' 'एको ब्रह्म० ' ।