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अ० ३२ भावपओसफलं ]
सुत्तागमे
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कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ७८ ॥ फासाणुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसइणेगरूवे । चित्तेहि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तट्ठगुरू किलिट्टे ॥ ७९ ॥ फासाणुवाएण परिग्गहेण, उप्पायणे रक्खणसन्निओगे । वए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ८० ॥ फासे अतित्ते य परिग्गहंमि, सत्तोवसत्तो न उवेइ तुहिं । अतुट्ठिदोसेण दुही परस्स, लोभाविले आयई अदत्तं ॥ ८१ ॥ तहाभिभूयस्स अदत्तहारिणो, फासे अतित्तस्स परिहेय । मायामु वढाइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुच्चई से ॥ ८२ ॥ मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ य, पओगकाले य दुही दुरंते । एवं अदत्ताणि समाययेतो, फासे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ८३ ॥ फासाणुरत्तस्स नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेसदुक्खं निव्वत्तई जस्स कएण दुक्खं ॥ ८४ ॥ एमेव फासंमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पट्ठचित्तो य चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ॥ ८५ ॥ फासे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ८६ ॥ (६) मणस्स भावं गहणं वयंति, तं रागहेउं तु मणुन्नमाह । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समोय जो तेसु स वीयरागो ॥ ८७ ॥ भावस्स मणं गहणं वयंति, मणस्स भावं गहणं वयंति । रागस्स हेउं समणुन्नमाहु, दोसस्स हेउं अमणुन्नमाहु ॥ ८८ ॥ भावेसु जो गिद्धिमुवेइ तिव्वं, अकालियं पावइ से विणासं । रागाउरे कामगुणेसु गिद्धे, करेणुमग्गावहिए गजे वा ॥ ८९ ॥ जे यावि दोसं समुवेइ तिब्वं, तंसि क्खणे से उ उवे दुक्खं । दुर्द्दतदोसेण सएण जंतू, न किंचि भावं अवरज्झई से ॥ ९० ॥ एगंतर रुइरंसि भावे, अतालिसे से कुणई पओसं । दुक्खस्स संपीलमुवेइ बाले, न लिप्पई तेण मुणी विरागो ॥ ९१ ॥ भावानुगासाणुगए य जीवे, चराचरे हिंसes | चित्ते हि ते परितावेइ बाले, पीलेइ अत्तगुरु किलिडे ॥ ९२ ॥ भावाणुवाण परिग्गण, उत्पायणे रक्खणसन्निओगे । बए विओगे य कहं सुहं से, संभोगकाले य अतित्तलाभे ॥ ९३ ॥ भावे अतित्ते य परिग्गर्हमि, सत्तोवसत्तो न उवेद तुहिं । अनुद्विदोसेण दुही परस्त, लोभाविले आययई अदतं ॥ ९४ ॥ तव्हा भिभूयस्स अदत्तहारिणों, भावे अतित्तस्स परिग्गहे य । मायामुसं बढइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुई से ॥ ९५ ॥ मोसस्स पच्छाय पुरत्थओ य, पओगकाले यदुही दुरं । एवं अदाणि समाययंतो, भावे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ॥ ९६ ॥ भावारतस्य नरस्स एवं कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगे वि किलेस दुक्खं, निव्वतई जस्स कएण दुक्खं ॥ ९७ ॥ एमेव भावमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोह