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अ० १६ दसबंभचेरसमाहिठाणा] सुत्तागमे पहिहे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ३ ॥ पंतं सयणासणं भइत्ता, सीउण्हं विविहं च दंसमसगं । अव्वग्गमणे असंपहिढे, जे कसिणं अहियासए स भिक्खू ॥ ४ ॥ नो सक्कइमिच्छई न पूर्य, नो वि य बंदणगं कुओ पसंसं । से संजए सुव्वए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥ ५ ॥ जेण पुण जहाइ जीवियं, मोहं वा कसिणं नियच्छई । नरनारिं पजहे सया तवस्सी, न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥६॥ छिन्नं सरं भोमं अंतलिक्खं, सुमिणं लक्खणदंडवत्थुविजं । अंगवियारं सरस्स विजयं, जे विजाहिं न जीवइ स भिक्खू ॥ ७ ॥ मंतं मूलं विविहं वेजचिंतं, वमणविरेयणधूमणेत्तसिणाणं । आउरे सरणं तिगिच्छियं च, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥ ८ ॥ खत्तियगणउग्गरायपुत्ता, माहण भोइय विविहा य सिपिणो । नो तेसिं वयइ सिलोगपूर्य, तं परिन्नाय परिव्वए स भिक्खू ॥ ९ ॥ गिहिणो जे पव्वइएण दिट्ठा, अप्पव्वइएण व संथुया हविज्जा । तेसिं इहलोइयफलट्ठा, जो संथवं न करेइ स भिक्खू ॥ १० ॥ सयणासणपाणभोयणं, विविहं खाइमं साइमं परेसिं । अदए पडिसेहिए नियंठे, जे तत्थ न परस्सई स भिवखू ॥ ११॥ जं किंचि आहारपाणगं, विविहं खाइमं साइमं परेसिं लर्छ । जो तं तिविहेण नाणुकंपे, मणवयकायमुसंबुडे स भिक्ख ॥ १२ ॥ आयामगं चेव जवोदणं च, सीयं सोवीरजबोदगं च । नो हीलए पिंडं नीरसं तुः, पंतकुलाई परिव्वए स भिक्रत ॥ १३ ॥ सदा विविहा भवंति लोए, दिव्या माणुस्सगा तिरिच्छा । भीमा भयभरवा उराला, जो सोचा न विहि नई स भिक्खू ॥ १४ ॥ वायं विविहं समिन लोए, सहिए खेयाणुगए य कोवियप्पा । पन्ने अभिभूय सव्वदंसी, उवसंते अविहेडाए म भिवग्बू ॥ १ ॥ असिप्पजीवी अगिहे अमित्ते, जिइंदिए सव्वओं विष्पमुक । अणुकगाई लहुअप्पभक्खी, चिचा गिह एगचरे स भिस्व ॥ १६॥ ति-वमि ॥ इति समिक्त्र णामं पण्णरसममज्झयणं समत्तं ॥ १५॥
अह बंभचेरसमाहिठाणा णामं सोलसममज्झयणं
मयं में आइसं ! तणं भगवथा एवमस्खायं । इह खट थेरेहिं भगवंतात दस बंभरगमाहिठाणा पन्नत्ता, जे भिकन गोगा निसम्म संत्रमबहुल मंचर वाले
1 न स भिक्खुत्ति सेगो, अहवा नाणुकंपे ना+अणुकंधे "ना" गारिकों गिहत्यगिहुवल विमुद्धाहारादणा बालबुद्धगिलाणसंजयाणमयरिमणुक.पं का नया वथं करेइति । २ मिनगनुवनिए रागदोगरहिए ति अहो ।