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सुत्तागमे
[उत्तरज्झयणसुत्तं ॥ २९ ॥ अवउज्झिय मित्तबंधवं, विउलं चेव धणोहसंचयं । मा तं बिइयं गवेसए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३० ॥ न हु जिणे अज दिस्सई, बहुमए दिस्सइ मग्गदेसिए । संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३१ ॥ अवसोहिय कंटगापहं, ओइण्णो सि पहं महालयं । गच्छसि मग्गं विसोहिया, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३२ ॥ अबले जह भारवाहए, मा मग्गे विसमेऽवगाहिया । पच्छा पच्छाणुतावए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३३ ॥ तिण्णो हु सि अण्णवं महं, किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ । अभितुर पारं गमित्तए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३४ ॥ अकलेवरसेणिं उस्सिया, सिद्धिं गोयम ! लोयं गच्छसि । खेमं च सिवं अणुत्तरं, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३५ ॥ बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गामगए नगरे व संजए । संतीमग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए ॥ ३६ ॥ बुद्धस्स निसम्म भासियं, सुकहियमट्ठपओवसोहियं । रागं दोसं च छिंदिया, सिद्धिगई गए गोयमे ॥ ३७ ॥ त्ति-बेमि ॥ इति दुमपत्तयं णामं दसममज्झयणं समत्तं ॥१०॥
अह बहुस्सुयपुजं णामं एगारसममज्झयणं
. संजोगा विप्पमुक्कस्स, अणगारस्स भिक्खुणो । आयारं पाउकरिस्सामि, आणुपुवि सुणेह मे ॥ १॥ जे यावि होइ निविजे, थद्धे लुद्धे अणिग्गहे । अभिक्खणं उल्लवई, अविणीए अबहुस्सुए ॥२॥ अह पंचहिं ठाणेहिं, जेहिं सिक्खा न लब्भई । थम्भा कोही पमाएँणं, रोगेणाऽलस्सएण य ॥ ३ ॥ अह अहिं ठाणेहिं, सिक्खासीले त्ति वुच्चई । अहस्सिरे सया दंते, न य मम्ममुदाहरे ॥ ४ ॥ नासीले न विसीले, न सिया अइलोलुएँ । अकोहणे सच्चरएँ, सिक्खासीले त्ति बुच्चई ॥ ५ ॥ अह चोद्दसहि ठाणेहिं, वट्टमाणे उ संजए । अविणीए वुच्चई सो उ, निव्वाणं च न गच्छई ॥ ६॥ अभिक्खणं कोही हवई, पबंधं च पकुव्वेई । मेत्तिजमाणो वमैई, सुयं लद्भूण मर्जेई ॥ ७ ॥ अवि पावपरिक्खेवी, अवि मित्तेसु कुप्पई । सुप्पियस्लावि मित्तस्स, रहे भासइ पावयं ॥ ८ ॥ पइण्णवाई दुहिले, थद्धे लुद्धे अणिग्गहै । असंविभागी अवियत्ते, अविणीए त्ति वुच्चई ॥ ९॥ अह पन्नरसहिं ठाणेहिं, सुविणीए त्ति वुच्चई । नीयावित्ती अचवेले, अमाई अकुऊहले ॥ १० ॥ अप्पं च अहिक्खिवई, पबंधं च न कुर्वई । मेत्तिज्जमाणो भयई, सुयं लद्धं न मर्जई ॥ ११ ॥ न य पावपरिक्खेवी, न य मित्तेसु कुप्पई । अप्पियस्सावि मित्तस्स, रहे कल्लाण भासई ॥ १२॥