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अट्ठमज्झयणसमत्ती] सुत्तागमे
अह काविलियं णामं अहममज्झयणं
अधुवे असासयम्मि, संसारंमि दुक्खपउराए। किं नाम होज तं कम्मयं, जेणारं दुग्गई न गच्छेजा ? ॥१॥ विजहित्तु पुव्वसंजोयं, न सिणेहं कहिंचि कुव्वेजा। असिणेहसिणेहकरेहि, दोसपओसेहि मुच्चए भिक्खू ॥२॥ तो नाणदंसणसमग्गो, हियनिस्सेसाए सव्वजीवाणं । तेसिं विमोक्खणट्ठाए. भासइ मुणिवरो विगयमोहो ॥ ३ ॥ सव्वं गंथं कलहं च, विप्पजहे तहाविहं भिक्खू । सव्वेसु कामजाएमु, पासमाणो न लिप्पई ताई ॥ ४ ॥ भोगामिसदोसविसन्ने, हियनिस्सेयसबुद्धिवोचत्थे । बाले य मंदिए मूढे, बज्झइ मच्छिया व खेलम्मि ॥५॥ दुप्परिच्चया इमे कामा, नो सुजहा अधीरपुरिसेहिं । अह संति सुव्वया साहू , जे तरंति अतरं वणिया वा ॥ ६॥ समणा मु एगे वयमाणा, पाणवहं मिया अयाणंता । मंदा निरयं गच्छंति, बाला पावियाहिं दिट्ठीहिं ॥ ७ ॥ न हु पाणवहं अणुजाणे, मुच्चेज कयाइ सव्वदुक्खाणं । एवमायरिएहिं अक्खायं, जेहिं इमो साहुधम्मो पन्नत्तो ॥ ८ ॥ पाणो य नाइवाएजा, से समीइत्ति बुच्चई ताई । तओ से पावयं कम्मं, निजाइ उदगं व थलाओ ॥९॥ जगनिस्सिएहिं भूएहिं, तसनामेहिं थावरेहिं च । नो तेसिमारभे दंडं, मणसा वयसा कायसा चेव ॥ १० ॥ सुद्धसणाओ नचाणं, तत्थ ठवेज भिक्रव अप्पाणं । जायाए घासमेसेज्जा, रस गिद्धे न सिया भिक्खाए ॥ ११॥ पंताणि चेव सेवेजा, सीयपिंडं पुराणकुम्मासं । अटु बुक्कसं पुलागं वा, जवणढाए निसेवए मंधुं ॥ १२ ॥ जे लक्खणं च मुविणं च, अंगविजं च जे पउंजंति । न हु ते समणा बुचंति, एवं आयरिएहिं अक्खायं ॥ १३॥ इह जीवियं अणियमेत्ता, पन्भट्ठा समाहिजोएहिं । ते कामभोगरस गिद्धा, उबवनंति आमुरे काए॥१४॥ तत्तो वि य उव्यट्टित्ता, संसारं बहु अणुपरियडंति । बहुकम्मलेवलिताणं, बोही होइ सुदुलहा तेसिं ॥ १५ ॥ कसिणं पि जो इमं लोयं, पडिपुण्णं दलेज इकस्स । तेणावि से न संतुस्से, इइ दुप्पूरए इमे आया ॥ १६ ॥ जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवहुई । दोमासकयं कर्ज, कोडीए वि न निहियं ॥ १७ ॥ नो रक्खसीसु गिजझेजा, गंडवच्छामुऽणेगचित्तामु । जाओ पुरिसं पलोभित्ता, हति जहा व दासेहिं ॥१८॥ नारीनु नोवगिझेजा, इत्थी विष्पजहे अणागारे । धम्म च पेसलं नचा, तत्थ ठवेज भिक्खू अप्पाणं ॥ १९ ॥ इइ एस धम्मे अक्खाए, कविलेणं च विमुद्धपमेणं । तरिहिंति जे उ काहिंति, तेहिं आराहिया दुवे लोग ॥ २० ॥ त्ति-बेमि ॥ इति काविलियं णाम अट्टममजायणं समतं ॥ ८॥