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________________ '७६० सुत्तागमे [भगवई वेयणासमुग्घाए कसायससुग्घाए मारणंतियसमुग्घाए, मारणंतियसमुंग्याएणं समोहणमाणे देसेणं वा समोहणइ सव्वेण वा समोहणइ, देसेणं समोहणमाणे पुचि संपाउणित्ता पच्छा उववजिज्जा, सव्वेणं समोहणमाणे पुव्वि उववजित्ता पच्छा संपाउणेजा, से तेणढेणं जाव उर्ववजेज्जा । पुढविक्काइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पं. भाए पुढवीए जाव समोहए २ त्ता जे भविए ईसाणे कप्पे पुढवि० एवं चेव ईसाणेवि, एवं जाव अचुयगेविजविमाणे, अणुत्तरविमाणे ईसिप्पन्भाराएं य एवं चेव । पुढविकाइए णं भंते ! सक्करप्पभाए पुढवीए समोहए २ ता जे भविए सोहम्मे कप्पे पुढवि० एवं जहा रयणप्पभाए पुढविकाइओ उववाइओ एवं सकरप्पभाएवि पुढविकाइओ उववाएयव्वो जाव ईसिप्पन्भाराए, एवं जहा रयणप्पभाए वत्तव्वया भणिया एवं जाव अहे सत्तमाए समोहए ईसिप्पन्भाराए उववाएयव्वो। सेवं भंते ! २त्ति (१७-६)॥६०३॥ पुढविकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए पुढविकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते ! कि पुव्वि सेस तं चेव जहा रयणप्पभाए पुढविकाइओ सव्वकप्पेसु जावईसिप्पन्साराएं ताव उववाइओं एवं सोहम्मपुढविकाइओवि सत्तसुवि पुढवीसु उववाएयव्वो जाव अहे सत्तमाए, एवं जहा सोहम्मपुढविकाइओ सव्वपुढवीसु उववाइओ एवं जाव ईसिप्पन्भारापुढविकाइओ सव्वपुढवीसु उववाएयवो जाव अहे सत्तमाए, सेवं संते ! २ त्ति (१७-७) ॥६०४॥ आउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए समोहए २ त्ता जे भविए सोहम्मे कप्पे आउकाइयत्ताए उववजित्तए एवं जहा पुढविकाइओ तहा आउकाइओवि सव्वकप्पेसु जाव ईसिप्पन्भाराए तहेव उववाएयव्वो, एवं जहा रयणप्पभाआउकाइओ उववाइओ तहा जाव अहेसत्तमापुडविआउकाइओ उववाएयव्वो जाव ईसिप्पव्भाराए, सेवं भंते ! २ त्ति (१७-८)॥६०५॥ आउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए समोहणित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदहिवलएसु आउकाइयत्ताए उववज्जित्तए से णं भंते ! सेसं तं चेव एवं जाव अहे सत्तमाए जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाव ईसिप्पन्भाराआउक्काइओ जाव अहे सत्तमाए उववाएयव्वो, सेवं भंते ! २ त्ति (१७-९)॥६०६॥ वाउकाइए णं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव जे भविए सोहम्मे कप्पे वाउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं जहा पुढविकाइओ तहा वाउकाइओवि नवरं वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्धाया प०, तं०-वेयणासमुग्घाए जाव वेउब्वियसमुरघाए, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहणमाणे देसेण वा समो० सेसं तं चेच जाव अहे सत्तमाए समोहओ ईसिप्पन्भाराए उववाएयव्वो, सेवं भंते ! २ त्ति (१७-१०) ॥६०७ ॥ वाउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए २ त्ता जे
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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