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छठ्ठमज्झयणं उ० १]
सुत्तागमे
अणाणाए एगे सोवठ्ठाणा आणाए एगे निस्वठ्ठाणा एतं ते मा होउ, एयं कुसलस्स दंसणं ॥ ३२२ ॥ तद्दिट्ठीए तम्मुत्तीए तप्पुरकारे तस्सण्णी तण्णिवेसणे, अभिभूय अदक्खू, अणभिभूते पभू निरालंबणयाए; जे महं अवहिंमणे ॥ ३२३ ॥ पवाएगं पवायं जाणिजा, सहसम्मइयाए, परवागरणेगं अन्नेसिं वा अंतिए सोचा ॥ ३२४ ॥ सिं गातिवट्टेजा मेहावी सुपडिलेहिया सव्वतो सव्वप्पणा सम्ममेव समभिण्णाय ॥ ३२५ ॥ इह आरामं परिण्णाय अल्लीणगुत्तो आरामो परिव्वए, णिठियठ्ठी वीरे आगमेण सदा परिक्क मेजासि त्ति बेमि ॥ ३२६ ॥ उ सोता, अहे सोता, तिरियं सोता वियाहिया ; एते सोया वियक्खाया, जेहिं संगति पासा ॥ ३२७ ॥ आवट्टं तु उवेहाए, एत्थ विरमिज्ज पुव्ववी ॥ ३२८ ॥ विणइत्तु सोयं णिक्खम्म एसमहं अकम्मा जाणति, पासति, पडिलेहाए णावकंखति, इह आगति गतिं परिण्णाय अच्चेइ जातिमरणस्स वट्टमग्गं विक्खायरए ॥ ३२९ ॥ सव्वे सरा णियति, तक्का जत्थण विज्जर, मई तत्य ण गाहिता, ओए अप्पतिट्ठाणस्स खेयने ॥ ३३० ॥ सेण दी
हस्सेण वट्टेण तंसेण चउरंसे ण परिमंडले, न किण्हे, न गीले, ण लोहिए, प हालिद्दे ण सुकिल्ले ण सुरहिगंधे ण दुरहिंगंधे ण तित्ते ण कडुए, ण कसाए ण अंबिलेण महुरे ण कक्खडे ण मउएण गरुए ण लहुए ण सीए ण उण्हेण णिद्धेण लुक्खेण काऊ ण रहेण संगेण इत्थी ण पुरिसे ण अन्नहा परिण्णे, सण्णे ॥ ३३१ ॥ उवमा विजए, अरूवी सत्ता, अपयस्स पयं णत्थि ॥ ३३२ ॥ सेण सद्देण रूवेण गंधेण रसे फासे इच्छेवत्ति बेमि ॥ ३३३ ॥ छट्टोदेसो समत्तो ॥
| लोकसारणाम पंचमज्झयणं समत्तं ॥
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ओज्झमाणे इह माणवेसु आधाइ से परे, जस्सिमाओ जाइओ सव्वओ सुपडिलेहियाओ भवति, आघाइ से णाणमणेलिसं ॥ ३३४ ॥ से किट्टति तेसि समुठियाणं णिक्खित्तडागं समाहियागं पन्नाणमंतागं इह मुत्तिमग्गं, एवं एगे महावीरा विप्परिकमंति, पासह एगे अविसीयमाणे अणत्तपन्ने ॥ ३३५॥ से बेमि से जहावि कुम्मे हरए विणिविठ्ठचित्ते पच्छन्नपलासे उम्मग्गं से णो लहइ ॥ ३३६ ॥ भंजगा इव सन्निवेसं णो चयंति, एवं एगे अगरूवेहिं कुलेहिं जाया, रूवेहिं सत्ता, कलुणं थणंति, णियाणओ ते ण लभंति मुक्खं ॥ ३३७ ॥ अह पास तेहिं कुलेहि आयत्ताए जाया ॥ ३३८ ॥ गंडी अदुवा कुठ्ठी, रायंसी अवमारियं । काणियं झिमियं चेव, कुणियं खुज्जियं तहा ॥ उअरिं पास मूयं च सूणिअं च गिलासिगिं, वेवई पीढसपि च, सिलिवयं महुमेहगिं सोलस एते रोगा, अक्खाया अणुपुव्वसो, अह णं फुसंति