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सुत्तागमे
[ भगवई
गेहइ २ ता किठिणसंकाइयं भरेइ किढि ० २ त्ता दव्भे य कुसे य समिहाओ य पत्तामोड च गेण्इ २ ता जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ २ ता किढिणसंकाइयगं ठवे किढि ० ०२त्ता वेई वड्डेइ २ त्ता उवलेवणसंमजणं करेइ उ० २ ता दव्भसगव्भकलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानई तेणेव उवागच्छइ गंगामहानई ओगाहेइ २ त्ता जलमजणं करेइ २ त्ता जलकीडं करेइ २ त्ता जलाभिसेयं करेइ २ त्ता आयंते चोक्खे परमसुइभूए देवयपिइकयकज्जे दग्भसगन्भकलसाहत्थगए गंगाओ महानईओ पचत्तर २ त्ता जेणेवं सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता दब्भेहि य कुसेहि य वालुयाए य वेई रएइ वेई रएत्ता सरएणं अरणिं महेड सर० २ ता अरिंग पाडेइ २ त्ताअरिंग संयुक्रे २ ता समिहाकट्टाई पक्खिवइ समिहाकाई पक्खिवित्ता अरिंग उज्जाले अरिंग उज्जालेत्ता - 'अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादद्दे । तं० - सकहं वक्कलं ठाणं, सिज्जाभंड कमंडलुं ॥ १॥ दंडदारुं त ( हप्पा ) हा पाणं अहेताई समादहे ॥ महुणा य घएण य तंदुलेहि य अरिंग हुणइ, अरिंग हुणित्ता चरुं साहेइ, चरुं साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलिं वइस्स देवं करेत्ता अतिहिपूयं करेइ अति हिपूयं करेत्ता तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ, तए णं से सिवे रायरिसी दोचं छट्ठक्खमण उवसंप जित्ताणं विहरइ, तए णं से सिवे रायरिसी दोचे छट्ठक्खमणपारणगंसि आयावणभूमीओ पचोरहर आयावण० २ त्ता एवं जहा पढमपारणगं नवरं दाहिणं दिसं पोक्खेइ २ ता दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव जाव आहारमाहारेइ, तए णं से सिवरायरिसी तच्च छट्ठक्खमणं उवसंपजित्ता णं विहरइ, तए णं से सिवे रायरिसी सेसं तं चेव नवरं पचत्थिमं दिसिं पोक्खेइ पचत्थिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव जाव आहारमाहारेइ, तए णं से सिवे रायरिसी चउत्थं छट्ठक्खमणं उबसंपजित्ता णं विहरड, तए णं से सिवे रायरसी उत्क्खमण एवं तं चैव नवरं उत्तरं दिसं पोक्खेइ उत्तराए दिसाए वेसमणे- महाराया पत्थाणे पत्थियं अभिरक्खउ सिवं० सेसं तं चैव जाव तओ पच्छा अप्पणा आहारमाहारेइ ॥ ४१६ ॥ तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्ठेणं अनिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालेणं जाव आयावेमाणस्स पगइभद्दयाए जाव विणीययाए अन्नया कयाइ तयावरणिजाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहापोहभग्गणगवेसणं करेमाणस्स विभंगे नामं अन्नाणे समुप्पन्ने, से णं तेणं विभंगनाणेणं समुप्पन्नेणं पासइ अस्सि लोए सत्त दीवे सत्त समुद्दे तेण परं न जाणइ न पासइ, तए णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अयमेयारुवे अब्भत्थिए जाव समुप्पज्जित्था - अस्थि णं ममं अइसेसे नाणदंसणे समुप्पन्ने एवं खलु अस्सि लोए सत्त दीवा सत्त समुद्दा तेण परं