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बीअमज्झयणं उ० ४] सुत्तागमे तमि ठाणमि चिठ्ठइ ॥ ९९ ॥ उद्देसो पासगस्स णत्थि ॥ १०० ॥ वाले पुण णिहे कामसमणुण्णे असमितदुक्खे दुक्खी दुक्खाणमेव आवढे अणुपरियट्टइ त्ति बेमि॥१०१॥ तइओद्देसो समत्तो॥ __ततो से एगया रोगसमुप्पाया समुप्पजति ॥ १०२ ॥ जेहिं वा साद्ध संवसति, ते वा णं एगया णियया पुब्बि परिवयंति । सो वा ते णियगे पच्छा परिवइजा, णालं ते तव ताणाए वा, सरणाए वा, तुम पि तेसि णालं ताणाए वा सरणाए वा ॥ १०३ ॥ जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ॥ १०४ ॥ भोगा मे व अणुसोयंतिइहमेगेसिं माणवाणं, तिविहेण, जावि से तत्थ मत्ता भवइ, अप्पा वा, बहुगा वा, से तत्थ गट्ठिए चिकृति, भोयणाए ॥ १०५ ॥ ततो से एगया विपरिसिठं संभूयं महोवगरणं भवति, तंपि से एगया दायाया विभयंति, अदत्तहारो वा से हरति, रायाणो वा से विलुपंति, णस्सइ वा से, विणस्सइ वा से, अगारडाहेण वा से डज्झइ ॥ १०६ ॥ इय, से वाले परस्स अठ्ठाए कूराणि कम्माणि पकुव्वमाणे तेण दुक्खेण मूढ़े विप्परियासमुवेति ॥ १०७ ॥ आसं च छंदं च विगिच धीरे ॥ १०८॥ तुमं
चेव तं सहमाहट्ट ॥ १०९ ॥ जेणसिया तेण णो सिया ॥ ११० ॥ इणमेव णावबुझंति, जे जणा मोहपाउडा ॥ १११॥ थीलोएपव्वहिए ते भो वयंति “एयाई आयतणाई” ॥ ११२ ॥ से दुक्खाए-मोहाए-माराए-णरगाए-णरगतिरिक्खाए ॥ ११३ ॥ सततं मूढे धम्मं णाभिजाणाति ॥ ११४ ॥ उदाहु वीरे, अप्पमादो महामोहे ॥ ११५ ॥ अलं कुसलस्स पमादेणं, संति मरणं संपेहाए, भेउरधम्म संपेहाए ॥११॥णालं पास अलं ते एएहिं, एयं पस्स, मुणी ? महब्भयं ॥११७॥ णातिवाइज कंचणं ॥ ११८ ॥ एस वीरे पसंसिए-जे ण णिविज्जति आदाणाए ॥ ११९ ॥ “ण मे देति" ण कुप्पिज्जा, थोवं लर्बु ण खिसए, पडिसेहियो परिणमिज्जा, पडिलाभिओ परिणमेज्जा ॥ १२० ॥ एयं मोणं समणुवासिज्जासित्ति बेमि ॥ १२१ ॥ चउत्थोद्देसो समत्तो॥
जमिणं विरूवरूवेहि सत्थेहि लोगस्स कम्मसमारंभा कजंति, तंजहा-अप्पणो से । पुत्ताणं, धूयाणं, मुण्हाणं, णातीणं, धातीणं, राईणं, दासाणं, दासीणं, कम्मकराणं, कम्मकरीगं, आएसाए, पुढोपेहणाए, सामासाए, पायरासाए, संणिहि-संनिचओ कजई, इह मेगेसिं माणवाणं भोयणाए ॥ १२२ ॥ समुछिते अणगारे आरिए आरियदंसी, आरियपण्णे, अयंसंधित्ति, अदक्खु, से णादिए, णादिआवए, णादियंतं समणुजाणइ ॥ १२३ ॥ सव्वामगंधं परिण्णाय णिरामगंधो परिव्वए ॥ १२४ ॥ अदिस्समाणे कयविक्कएसुः से ण किणे, ण किणावए, किगंतं ण समणुजाणइ ॥१२५॥