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________________ ५५२ सुत्तागमे - [भगवई हए १ । से य संपढ़िए असंपत्ते अप्पणा य पुत्वामेव अमुहे सिया से णं भंते ! कि आराहए विराहए ? गोयमा! आराहए नो विराहए २, से य संपट्टिए असंपत्ते थेरा य कालं करेना से णं भंते ! किं आराहए विराहए ? गोयमा! आराहए नो विराहए ३, से य संपट्टिए असंपत्ते अप्पणा य पुत्वामेव कालं करेजा से णं भंते ! कि आराहए विराहए ? गोयमा! आराहए नो विराहए ४, से य संपट्ठिए संपत्ते थेरा य अमुहा सिया से णं भंते ! किं आराहए विराहए ? गोयमा ! आराहए नो विराहए, से य संपट्ठिए संपत्ते अप्पणा य० एवं संपतेणवि चत्तारि आलावगा भाणियव्वा जहेव असंपत्तेणं ।, निग्गंथेण य पहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खंतेणं अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवइ-इहेव ताव अहं० एवं एत्यवि एए चेव अट्ठ आलावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए । निग्गंथेण य गामाणुगास दूंहुज्जमाणेणं अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए तस्स णं एवं भवइ इहेव ताव अहं० एत्थवि ते चेव अट्ट आलावगा भाणियव्वा जाव नो विराहए ॥ निग्गंधीए य गाहावडकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविठ्ठाए अन्नयरे अकिञ्चट्ठाणे पडिसेविए. तीसे णं एवं भवइ इहेवं ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि जाव तवोकम्म पडिवजामि तओ पच्छा पवत्तिणीए अंतियं आलोएस्सामि जाव पडिवजिस्सामि, सा य संपडिया असंपत्ता पवत्तिणी य अमुहा सिया साणं भंते ! कि आराहिया विराहिया?; गोयमा ! आराहिया नो विराहिया, सा य संपदिया जहा निग्गंथस्स तिन्निगमा भणिया एवं निग्गंथीएवि तिन्नि आलावगा भाणियव्वा जाव आराहिया नो विराहिया ॥ से केणटेणं भंते! एवं वुच्चइ-आराहए नो विराहए ?. गोयमा ! से जहा, नामए-केइ पुरिसे एग महं उन्नालोमं वा गयलोम. वा सणलोमं वा कैप्पासलोमं वा तणसूयं वा दुहा वा तिहा वा संखेजहा वा छिदित्ता अगणिकायति पक्खिवेजा से नूणं गोयमा! छिनमाणे छिन्ने पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते दज्जमाणे दड्डेत्ति वत्तव्वं सिया ? हंता भगवं! छिजसाणे छिन्ने जाव दड्वेत्ति वत्तव्वं सिया, से जहा वा केइ पुरिसे वत्यं अहयं वा धोयं वा तंतुम्गयं - वा मंजिहादोणीए पक्खिवेना से नूर्ण गोयमा! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते पक्खिप्पमाणे पक्खित्ते रजमाणे रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया ? हंता भगवं! उक्खिप्पमाणे उक्खित्ते जाव रत्तेत्ति वत्तव्वं सिया, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-आराहए नों विराहए ।। ३३३ ॥ पईवस्स णं भंते ! झियायमाणसं किं पईवे झियाइ लट्ठी झियाइ वनी झियाइ तेढ़े झियाइ पईवचंपए झियाई जोई झियाइ ? गोयमा! नो पईवे झियाइ जाव नो पईवचंपए झियाइ, जोई झियाइ । अंगारस्स णं भंते ! झियाय.
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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