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सुत्तागमे
[भगवई
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सत्तमे उवासंतरे पच्छा सत्तमे तणुवाए ?, एवं सत्तमं उबानंतर सव्वहिं समं संजोएयव्वं जाव सव्वद्धाए । पुचि भंते ! सत्तमे तणुवाए पाछा सत्तमे घणवाए ?, एयपि तहेव नेयव्वं जाव सव्वद्धा, एवं उवरिष्ठं एक संजोयंतेणं जो जो हिटिन्टो तं तं छटुंतेणं नेयव्वं जाव अतीयअणागयद्धा पच्छा सव्वहा जाव अगाणुपुत्वी एसा रोहा! सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति ! जाव विहरइ ॥ ५३॥ भंतेत्ति भगवं गोयमें समण जाव एवं वयासी-कतिविहा णं भंते ! लोयहिती प० ?, गोयमा! अहविता लोयद्विती प०, तंजहा-आगासपइट्ठिए वाए १ वायपइहिए उदही २ उदहीपइडिया पुढवी ३ पुढविपइट्ठिया तसा थावरा पाणा ४ अजीवा जीवपइडिया ५ जीवा कम्मपइट्ठिया ६ अजीवा जीवसंगहिया ७ जीवा कम्मसंगहिया ८ । से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ ?-अट्ठविहा जाव जीया कम्मसंगहिया ?, गोयमा ! से जहानामएकेइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ वत्थिमाडोवित्ता उप्पिं सितं बंधइ २ मझेणं गठिं बंधइ २ उवरिल्लं गठिं मुयइ २ उवरिलं देसं वामेइ २ उवरिल्लं देसं वामेत्ता उवरिलं देसं आउयायस्स पूरेइ २ उप्पिसि तं बंधइ २ मज्झिलं गठिं मुथइ । से नूणं गोयमा ! से आउयाए तस्स वाउयायस्स उप्पिं उवरितले चिट्टइ ?, हंता चिट्ठइ, से तेगडेणं जाव जीवा कम्मसंगहिया, से जहा वा केइ पुरिसे वत्थिमाडोवेइ २ कडीए बंधइ २ अत्थाहमतारमपोरसियंसि उदगंसि ओगाहेज्जा, से नूणं गोयमा ! से पुरिसे तस्स आउयायस्स उचरिमतले चिट्ठइ ?, हंता चिट्ठइ, एवं वा अट्ठविहा लोयहिई पण्णत्ता जाव जीवा कम्मसंगहिया ॥५४॥ अत्थि णं भंते! जीवा य पोग्गला य अन्नमनवद्धा अन्नमन्नपुट्ठा अन्नमनमोगाढा अन्नमन्नसिणेहपडिवद्धा अन्नमन्नघडत्ताए चिट्ठति ?, हंता! अस्थि । से केपटेणं भंते ! जाव चिट्ठति ?, गोयमा ! से जहानामए-हरदे सिया पुण्णे पुण्णप्पमाणे वोलट्टमाणे वोसट्टमाणे समभरघडताए चिठ्ठइ, अहे णं केइ पुरिसे तंसि हरदसि एगं महं नावं सयासवं सयछिडे ओगाहेजा, से नूर्ण गोयमा ! सा णावा तेहिं आसवदारेहिं आपूरमाणी २ पुण्णा पुण्णप्पमाणा वोलट्टमाणा वोसट्टमाणा समभरघडत्ताए चिट्ठइ ?, हंता चिटइ, से तेणढणं गोयमा! अत्थि णं जीवा य जाव चिट्ठति ॥ ५५ ॥ अस्थि णं भंते ! सया समियं सुहुमे सिणेहकाए पवडइ ?, हंता अस्थि । से भंते ! कि उड्डे पक्डइ अहे पवडइ तिरिए पवडइ ?, गोयमा ! उड्डेवि पवडइ अहे पवडइ तिरिएवि पवडइ, जहा से वादरे आउयाए अन्नमन्नसमाउत्ते चिरंपि दीहकालं चिट्ठइ तहा णं सेवि ?, नो इणढे समढे, से गं खिप्पामेव विद्धंसमागच्छइ । सेवं भंते । सेवं भंतेत्ति ! ॥ १॥ ५६ ॥ छडो उद्देसो समत्तो॥ . नेरइए णं भंते ! नेरइएसु उववजमाणे किं देसेणं देसं उववजइ देसेणं सव्वं