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________________ अ०९] सुत्तागमे २९५ ॥ ८५६ ॥ तेइंदियाणमठ्ठ जाइकुलकोडीजोणीपमुहसयसहस्सा प० ॥ ८५७ ॥ नीवा णं अठ्ठठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावक्रम्मत्ताएं चिणिसु वा चिणंति वा चिणि संति वा तं०-पढमसमयनेरइयनिन्वत्तिए जाव अपढमसमयदेवनिव्वत्तिए एवं चिण उवचिण जाव णिज्जरा चेव- ।। ८५८ ॥ अठ्ठपएसिया खंधा अणंता प० ॥ ८५९ ॥ अट्ठ पएसोगाढा पोग्गला अणंता प० ॥ ८६०॥ जाव अगुणलुक्खा पोग्गला अणंता प० ॥ ८६१ ॥ अट्टमं ठाणं समत्तं ॥ नवमटाणं नवहिं ठाणेहिं समणे णिग्गंथे संभोइयं विसंभोइयं करेमाणे णाइक्कमइ तं०आयरियपडिणीयं उवज्झायपडिणीयं थेरपडिणीयं कुल० गण० संघ० नाण० दंसण० चरित्तपडिणीयं ॥ ८६२ ॥ नव वंभचेरा प० तं० सत्थपरिन्ना लोगविजओ जाव उवहाणसुयं महापरिण्णा ॥ ८६३॥ नव वंभचेरगुत्तीओ प० तं० विवित्ताई सयणासणाइं सेवित्ता भवइ णो इत्थिसंसत्ताइं नो पसुसंसत्ताई नो पंडगसंसत्ताई १ नो इत्थीणं कहं कहेत्ता २ नो इत्थिठाणाई सेवित्ता भवइ ३ नो इत्थीणमिंदियाई मणोहराई मणोरमाइं आलोइत्ता निज्झाइत्ता भवइ. ४ नो पणीयरसभोई ५ नो पाणभोयणस्स अइमत्तं आहारए सया भवइ ६ नो पुव्वरयं पुश्वकीलियं समरेत्ता भवइ ७ णो सद्दाणुवाई णो रूवाणुवाई णो सिलोगाणुवाई ८ णो सायसोक्खपडिवः यावि भवइ ९ ॥ ८६४ ॥ नव वंभचेरअगुत्तीओ प० तं० नो विवित्ताई सयणासणाई सेवित्ता भवइ इत्थीसंसत्ताई पसुसंसत्ताई पंडगसंसत्ताई इत्थीणं कहं कहेत्ता भवइ इत्थीणं ठागाइं सेवित्ता भवइ इत्थीणं इंदियाइं जाव निज्झाइत्ता भवइ पणीयरसभोई पाणभोयणस्स अइमायमाहारए सया भवइ पुन्वरयं पुव्वकीलियं सरित्ता भवइ सहाणुवाई रुवाणुवाई सिलोगाणुवाई जाव सायासुक्खपडिवद्धे यावि भवइ ॥ ८६५॥ अभिगंदणाओ णं अरहओ सुमई अरहा नवहिं सागरोवमकोडिसयसहस्सेहिं विइक्रतेहिं समुप्पन्ने ॥ ८६६ ॥ नव सम्भावपयत्था प० तं० जीवा अजीवा पुणं पावो आसवो संवरो णिज्जरा वंधो मोक्खो ॥ ८६७ ॥ णवविहा संसारसमाबन्नगा जीवा प० तं० पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया वेइंदिया जाव पंचिंदियत्ति ॥ ८६८ ॥ पुढवीकाइया नवगइया नव आगइया प० तं० पुटवीकाइए पुढवीकाइएनु उववजमाणे पुढवीकाइएहितो वा जाव पंचिदिएहितो वा उववजेजा, से चेव णं से पुढवीकाइए पुटवीकायत्तं विप्पजहमाणे पुढविकाइयत्ताए जाव पंचिंदियत्ताए वा गच्छेजा, एवं आउकाइयावि जाव पंचिंदियत्ति ॥ ८६९ ॥ नवविहा सव्वजीचा प० तं० एगिदिया बेइंदिया तेइंदिया चउरिंदिया नेरच्या पंचिंदियति
SR No.010590
Book TitleSuttagame 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchand Maharaj
PublisherSutragam Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages1314
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_acharang, agam_sutrakritang, agam_sthanang, agam_samvayang, agam_bhagwati, agam_gyatadharmkatha, agam_upasakdasha, agam_antkrutdasha, & agam_anutta
File Size89 MB
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