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सुत्तागमे
२ सु० अ० १६] पालित्ता, तीरित्ता, किट्टित्ता, आणाए आराहिए यावि भवइ ॥१०७४॥ भावणाज्झयणं पणरहमं समत्तं इय तइआ चूला समत्ता ।। __ अणिच्चमावासमुवेंति जंतुणो, पलोयए सुच्चमिदं अणुत्तरं; विऊसिरे विन्नु अगारबंधणं, अभीरु आरंभपरिग्गहं चए ॥ १०७५ ॥ तहाग भिक्खुमणंतसंजयं, अणेलिसं विन्नु चरंतमेसणं; तुदंति वायाहिं अभिद्दवं णरा, सरेहिं संगामगयं व कुंजरं ॥ १०७६ ॥ तहप्पगारेहिं जणेहिं हीलिए, ससद्दफासा फरुसा उईरिया; तितिक्खए णाणि अदुठ्ठचेयसा, गिरिव्व वारण ण संपवेयए ॥१०७७॥ उवेहमाणे कुसलेहिं संवसे, अकंतदुक्खी तसथावरा दुही; अल्सए सव्वसहे महामुणी, तहा हि से सुस्समणे समाहिए ॥ १०७८ ॥ विऊ णए धम्मपयं अणुत्तरं, विणीयतण्हस्स मुणिस्स ज्झायओ; समाहियस्सऽग्गिसिहा व तेयसा, तवो य पण्णा य जसो य वहइ ॥ १०७९ ॥ दिसोदिसिंऽणंतजिणेण ताइणा, महत्वया खेमपदा पवेदिता; महागुरू णिस्सयरा उदीरिया, तमेव तेऊत्तिदिसं पगासया ॥ १०८० ॥ सिएहिं भिक्खू असिए परिव्वए, असजमित्थीसु चएज पूअणं; अणिस्सिओ लोगमिणं तहा परं, णमिजइ कामगुणेहिं पंडिए ॥ १०८१॥ तहा विमुक्कस्स परिणचारिणो धिईमओ दुक्खखमस्स भिक्खुणो; विसुज्झई जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुप्पमलं व जोइणा ॥ १०८२ ॥ से हु प्परिण्णा समयमि वट्टइ, णिराससे उवरय मेहुणा चरे; भुजंगमे जुण्णतयं जहा जहे, विमुच्चइ से दुहसेज माहणे ॥ १०८३॥ जमाहु ओहं सलिलं अपारगं, महासमुदं व भुयाहिं दुत्तरं; अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुणी अंतकडे त्ति वुच्चइ ॥ १०८४ ॥ जहा हि बद्धं इह माणवेहि, जहा य तेर्सि तु विमोक्ख आहिओ; अहा तहा बंधविमोक्ख जे विऊ, से हु मुणी अंतकडे त्ति बुच्चइ ॥ १०८५ ॥ इममि लोए परए य दोसुवि, ण विजइ वंधणं जस्स किंचिवि; से हु णिरालंबणमप्पइट्ठिए, कलंकली भावपहं विमुच्चइ त्ति बेमि ॥ १०८६ ॥ सोलहमं विमुत्तिज्झयणं समत्तं ॥ सदाचारणाम बीओ सुयक्खंधो संपुण्णो, चउत्था चूडा समत्ता ॥
इइ आयारे