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________________ श्रेणिक बिम्बसार मे से एक के पुत्र तथा दूसरे के पुत्री हो तो दोनो का विवाह कर दिया जावे, जिससे उन दोनो के प्रेम का उनकी सन्तान भी निर्वाह करे । कालान्तर मे सेठ सागरदत्त के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम वसुमित्र रखा गया। इस पुत्र का आकार नाग जैसा था । सेठ सुभहृदत्त के एक कन्या हुई, जिसका नाम नागदत्ता रखा गया । युवावस्था प्राप्त करने पर उन दोनो का आपस मे विवाह कर दिया गया । विवाह के पश्चात् दोनो दम्पती श्रानन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे । एक बार नागदत्ता की माता सागरदत्ता अपनी पुत्री को अनेक प्रकार के आभूषण पहिरे देखकर रोने लगी । पुत्री द्वारा रोने का कारण पूछने पर वह उससे कहने लगी- ? "बेटी । कहा तो तेरा मनोहर रूप, सौभाग्य, उत्तम कुल तथा मनोहर मति और कहा भयकर शरीर का धारक बिना हाथ-पैर का तेरा पति नाग बेटी | मुझे सदा तेरे इसी अशुभ भाग्य की चिन्ता सताती रहती है । " माता को इस प्रकार रुदन करती देखकर पुत्री नागदत्ता का चित्त भी पिघल गया । वह उसको सात्वना देती हुई विनयपूर्वक बोली " माता ! तू इस बात के लिये तनिक भी खेद न कर । मेरा पति यद्यपि दिन भर नाग बना रहता है, किन्तु रात्रि होने पर वह प्रथम तो एक सन्दूक मे घुस जाता है और फिर उसमे से निकल कर उत्तम मनुष्याकार बन जाता है । फिर वह रात भर मनुष्य बनी हुआ मेरे साथ शयन करता है ।" पुत्री के मुख से इस विचित्र घटना को सुनकर माता सागरदत्ता आश्चर्य करने लगी । तब उसने अपनी पुत्री नागदत्ता से कहा- I "बेटी ! यदि यह बात सत्य है तो तू उस सन्दूक को किसी परिचित स्थान में रखकर मुझे पहिले से बतला देना । तब मै तेरी बात मानू गी ।" पुत्री नागदत्ता ने अपनी माता की यह बात स्वीकार कर ली । एक दिन उसने उस सन्दूक को किसी ऐसे स्थान पर रख दिया, जो उसकी माता ने उसे पहिले से बतलाया था । इसके पश्चात् वह अपने मनुष्याकार पति के
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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