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________________ रानी चेलना का धर्म-संघर्ष - अब खैर नहीं, क्योकि निश्चय ही रानी वौद्ध धर्म को बड़ से उखाड़ने के लिये पूरा-पूरा प्रयत्न कर रही है।" सम्राट् के इन वचनों से बौद्ध गुरु सजय को कुछ सात्वना मिली। वह इस बात से यह सोचने लगे कि "चलो राजा तो बौद्ध धर्म का भक्त है।" वह राजा' से बोले "राजन् । आप अपने मन मे खेद न करे। हम अभी रानी को जाकर समझाते है । हमारे लिये रानी को समझा लेना कुछ कठिन मही है।" बौद्ध साधु सजय राजा से यह कहकर रानी चेलना के पास आये। रानी ने जो उनको आते देखा तो उनको बडे आदर से प्रासन देकर विठलाया और स्वय उनके सामने बैठ गई। रानी ने उनसे कहा "कहिये महाराज, आपने मेरे महल में पधारने का कष्ट कैसे किया " तब सजय बोबे "रानी । हमने सुना है कि तू जैन धर्म को परम पवित्र धर्म समझती है और बौद्ध धर्म से घृणा करती है। यदि तेरा सचमुच मे ही ऐसा विचार है तो यह उचित नही है। तू यह निश्चयपूर्वक समझ ले कि ससार में जीवो का हित करने वाला केवल बौद्ध धर्म ही है । जैन धर्म से जीवो का कल्याण कदापि नही हो सकता। देख यह जितने नगे साधु है वह सब पशु के समान है । जिस प्रकार पशु नग्न रहता है उसी प्रकार ये भी नग्न फिरते रहते हैं। पशु जिस प्रकार आहार न मिलने से उपवास करता है उसी प्रकार ये भी पाहार के प्रभाव मे उपवास करते है। पशु के समान यह विचारशक्ति, ज्ञान तथा विज्ञान से भी रहित होते है । यह साधु जैसे इस जन्म में दीन दरिद्री होते हैं उसी प्रकार परजन्म में भी इनकी यही दशा रहती है। उन्हे अन्न तथा वस्त्र अगले जन्म में भी नही मिलता । वह जिस प्रकार क्षुधा, तृषा आदि का कष्ट इस जन्म में उठाते हैं, उसी प्रकार उनको अगले जन्म में भी उठाना पड़ता है।हे रानी । यह बात ध्यान देने की है कि क्षेत्र में जैसा बीज बोया जाता है उससे तदनुरूप ही फल उत्पन्न
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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