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श्रेणिक बिम्बसार
राजा श्रेणिक रानी चेलना के मुख से इस प्रकार जैन धर्म का स्वरूप सुनकर चुप हो गये। उन्होने रानी से केवल यही कहा
"रानी | मै पहिले ही कह चुका हू कि तुमको जो कुछ श्रेयस्कर जान पडे तुम वही करो, किन्तु अपने चित्त मे किसी प्रकार का मैल न लाओ। मै नही चाहता कि तुमको किसी प्रकार का दुख हो।"
महाराज के मुख से ऐसा अनुकूल उत्तर पाकर रानी चेलना अत्यन्त प्रसन्न हो गई । अब वह निर्भय होकर जैन धर्म का पालन करने लगी। उसने अपने महल में ही एक जैन मदिर बनवा लिया और वहा अत्यन्त भक्तिभाव से उपासना करने लगी। वह प्रत्येक अष्टमी तथा चतुर्दशी को निर्जल व्रत रखती थी । पर्वो के अवसर पर वह प्राय रात्रिजागरण भी किया करती थी। जैन शास्त्रो का स्वाध्याय वह प्रतिदिन किया करती थी। उसको इस प्रकार धर्म पर आरूढ देखकर समस्त रनवास उसकी धर्मभावना का प्रशसक हो गया। रानी चेलना ने कुछ ही दिनो के अदर समस्त रनवास को जैनी बना लिया।
राजा श्रेणिक बौद्ध मत के श्रद्धालु थे। अतएव राजगह मे कुछ बौद्ध साधु सदा ही बने रहते थे। उनको पता लगा कि रानी जैन धर्म की परम भक्त है और उसने सारे रनवास को जैनी बना लिया है तो राजगृह के प्रधान बौद्ध साधु सजय शीघ्र ही आकर राजा बिम्बसार से मिले । उन्होने राजा से कहा___ "राजन् । हमने सुना है कि आपकी रानी चेलना जैन धर्म की परम भक्त है तथा वह बौद्ध धर्म को एक घृणित धर्म मानती है । हमने यह भी सुना है कि वह बौद्ध धर्म को रसातल मे पहुचाने का पूरा प्रयत्न भी कर रही है । यदि यह बात सत्य है तो आप शीघ्र ही उसके प्रतीकार का कोई उपाय सोचे। अन्यथा बड़े भारी अनर्थ की सभावना है।"
बौद्ध गुरु सजय के ऐसे वचन सुनकर महाराज ने उत्तर दिया
"पूज्यवर | रानी को मै बहुत कुछ समझा चुका। उसके ध्यान मे एक भी बात नही आती । कृपाकर आप ही उसके पास जावे और उसे समझा। यदि आप इस सम्बन्ध मे विलम्ब करेंगे तो स्मरण रखिये कि बौद्ध धर्म की