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________________ ૭ ద रानी चेलना का धर्म-संघर्ष अर्ध रात्रि का समय है । चन्द्रमा अपनी सोलहो कलाओ से माकाश में चमक रहा है । चन्द्रमा का प्रकाश इतना उज्ज्वल है कि बहुत कम तारे उसके प्रकाश मे दिखलाई दे रहे है | चन्द्रमा का प्रकाश राजगृह नगर के ऊपर पडता हुआ ऐसा उत्तम दिखलाई दे रहा है, जैसे समस्त मगध के ऊपर दुग्ध की वर्षा हो रही हो । सारा नगर गहन निद्रा मे सोया पडा है, किन्तु सम्राट् बिम्बसार के शयनकक्ष से अभी तक भी प्रकाश की एक हल्की सी रेखा दिखलाई दे रही है, जिससे पता चलता है कि सम्राट् अभी तक जग रहे है । शयनककक्ष के अन्दर भोग-विलास की पूरी सामग्री उपस्थित है। दीवारो पर सुन्दर-सुन्दर चित्र टमे हुए है । कमरे के ठीक बीचो-बीच एक बहुत बडे पलग पर राजा श्रेणिक तथा रानी चेलना लेटे हुए चन्द्रमा की शोभा को देख रहे है । रानी कुछ उदास है । राजा उसको हसाने का बारबार प्रयत्न कर रहे हैं, किन्तु प्रत्यधिक यत्न करने पर भी वह उसको हसाने में अभी तक भी सफल नही हो सके । अन्त मे राजा बोले । "रानी क्या बात है ? मै तुमको प्राय उदास पाता हूँ । आज तो तुम मुझे विशेष रूप से उदास दिखलाई दे रही हो । जब से वैशाली तथा मगध का युद्ध बद हुआ है, मै तुमको प्राय उदास ही पाता हूँ ।" रानी — कुछ ऐसी खास बात तो नही है प्राणेश्वर । राजा - श्राज मैने तुहहारे मन की बात पूछने का पूर्ण निश्चय कर लिया है । तुमको मेरे सिर की सौगंध है, जो वास्तविक बात न बतलाओ । रानी- आप शपथ देते है तो बात बतलानी ही पडेगी । किन्तु वह ऐसी है राजन् कि वह आपके या मेरे किसी के भी वश की नही है । राजा - तो भी भै सुनू तो सही कि क्या बात है । २३१
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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