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मगध के दो राजनीतिज्ञ अभयकुमार अब बालक नही था। बह अठारह-उन्नीस वर्ष का युवव बन चुका था। उसकी उठान अच्छी थी, प्रत इस अठारह-उन्नीस वर्ष की प्रा. मे भी वह पच्चीस-तीस वर्ष का युवक दिखलाई देने लगा था । युवराज होने कारण उसे राज्य के सभी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य करने पड़ते थे। उसके कार महामात्य वर्णकार तथा सम्राट् बिम्बसार दोनो का ही कार्य बहुत हल्का हो ग था। उसको सदा यह ध्यान रहता था कि पिता को कोई कष्ट न हो। उन शारीरिक स्थिति पर वह अनेक प्रसिद्ध वैद्यो के होते हुए भी स्वय ध्यान f करता था।
इधर कुछ सप्ताह से वह देखता है कि पिता उदास रहते है।। कई बार उनसे इस उदासी का कारण पूछा भी, किन्तु उन्होने सदा ही टाल दी । अभयकुमार ने कई चिकित्सको से भी उनकी स्वास्थ्य परीक्षा व किन्तु वह भी इस विषय मे कुछ सहायता न कर सके । अन्त मे उसको चित्रकार द्वारा दिये हए चित्र का ध्यान पाया। यह सोचते ही उसने भ बुलवा भेजा। भरत आते ही अभिवादन करके उनके सामने खडा हो अभयकुमार उससे बोले
"कहो चित्रकार | राजगृह मे आपको किसी प्रकार का कष्ट तो ना
भरत-जब सम्राट् तथा युवराज दोनो की मुझ पर कृप मुझे कष्ट क्यो होने लगा, युवराज ।
अभय-तुमको अपने रहने का मकान तो पसद पाया ?
भरत-वह तो युवराज ऐसा जान पडता है जैसे उसे आपने ? बनवाया हो। उसमें मेरी सारी आवश्यकताए पूर्ण हो जाती है । में मैने अपनी चित्रशाला बना ली है, जिसमे राजगृह