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श्रेणिक बिम्बसार
मनोहर देवी ? यह नागकन्या है अथवा कामदेव की प्रिया रति है ? इसका रूप मेरे मन को बरबस अपनी ओर खैचे लेता है। किंतु यह तो ऐसे व्यक्ति की कन्या है जो मुझ से सब प्रकार से घृणा करता है । यद्यपि मेरा महामात्य वर्षकार संसार के प्रत्येक कार्य को कर सकता है, किन्तु वह इस प्रकार के कार्य मे मुझे सहायता नही देगा। वह देशभक्त है, साम्राज्यकामी है। अतएव मगध के साम्राज्य को बढाना उसके जीवन का व्रत है, किन्तु मेरे भोग-विलासो के विषय मे वह प्राचारवान् व्यक्ति मुझे तनिक भी सहायता नही देगा । ऐसी स्थिति मे क्या किया जावे ? मेरा हृदय तो अपने वश मे नही रहा । इस महिला-रत्न को प्राप्त किये बिना मेरा सारा साम्राज्य नि सार है।"
इस प्रकार विचार करते-करते सम्राट् अचेत हो गये ।