________________
श्रेणिक बिम्बसार
महाराज पर अभी तक भी नीद का नशा था । वह शब्दो के महत्व को लेशमात्र भी न समझकर बोल उठे-- ___"उनसे कह दो कि वह जहा से बावडी लाये है, वही लेजाकर उसे रख दें और राजमन्दिर से शीघ चले जावे ।"
राजा की इस आज्ञा को सुनकर ब्राह्मण बडे प्रसन्न हो गए। उन्होने एक बार फिर जोर से कहा “समाट् श्रणिक बिम्बसार की जय" आर वहा से एक दम चले गए। वह उछलते-कूदते नन्दिग्राम लौट गए और वहा पहुँचकर खुशी मनाने तथा अभयकुमार के बुद्धि-चातुर्य की प्रशसा करने लगे।
उधर गिरिव्रज के राजमहल मे जब महाराज श्रेणिक की नीद खुली तो उन्होने दौवारिक से पूछा-नन्दिग्राम के ब्राह्मण जो बावडी लाए थे, वह कहा है ? उसे शीघ्र ही मेरे पास लाओ।
दौवारिक-महाराज उसे तो वह आपकी आज्ञानुसार वापिस नन्दिग्राम ले गए । आपने आज्ञा दी थी कि बावडी को जहा से लाए हो वही ले जाकर उसे रख दो और शीघ्र ही राजमन्दिर से चले जाओ । इसीलिये वह उस बावडी को लौटा कर वापिस नन्दिग्राम चले गए।
दौवारिक के यह शब्द सुन कर राजा श्रेणिक को मन ही मन बड़ी निराशा हुई । उनको अपनी निद्रा के सम्बन्ध मे मन ही मन पश्चात्ताप होने लगा । वह अपने मन मे विचार करने लगे--
, “ससार मे जितने भयकर काम निद्रा करती है, इतने कोई नही करता। यह पिशाचिनी निद्रा जीवो के मुख पर पानी फेरनेवाली है। महर्षियो का यह कहना ठीक है कि जो मनुष्य अपना हित चाहता हो उसे निद्रा पर विजय प्राप्त करनी चाहिये, क्योकि जिस समय मनुष्य सोया होता है उस समय वह निद्रा के वश मे होकर अपने कर्मों पर से अधिकार को खो देता है। वास्तव में निद्रा को उसी प्रकार जीतना कठिन है जिस प्रकार क्षुधा को। जिस प्रकार क्षुधा के विषय में नीतिकार ने कहा है कि