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________________ बुद्धि-चातुय नन्दिग्राम से गिरिव्रज तक उनकी कतार की कतार बध जावे । तुम गिरिव्रज उस समय पहुँचो, जिस समय महाराज गाढ निद्रा मे सोते हो। तुम बेधड़क हल्ला मचाते हुए राज- मन्दिर मे घुस जाना और खूब जोर से पुकार कर कहना कि नन्दिग्राम के ब्राह्मण बावडी लाए है । जो आज्ञा हो किया जावे । बस, महाराज के उत्तर से ही आपका यह विघ्न दूर होगा ।" कुमार की यह बात सुनकर ब्राह्मणो की जान में जान आई। अब उन्होने गाव भर के सब बैलो तथा भैसो को एकत्र किया। उनके ऊपर जुवा रखकर उनमे मोटी-मोटी रस्सियाँ बांधी । प्रत्येक अगली रस्सी को पिछली रस्सी में बाघ दिया गया । भैसो तथा बैलो की यह बाधी हुई श्रृंखला इतनी लम्बी बनाई गई कि उसका अगला भाग गिरिव्रज में था तो पिछला भाग नन्दिग्राम में रहा । राज-भवन मे लगभग सौ सवासौ जोडी बैल, भैसे प्रात काल चार बजे के लगभग जा पहुंचे। उस समय वह लोग बैलो को जोर-जोर से निम्नलिखित शब्दो मे हाकते जाते थे । “अबे बच 1 अने दिखलाई नही देता । तत्ते । आहा | नन्दिग्राम से बावडी आई है, इसे सभालो ! आदि आदि ।" शोर करनेवाले भी कई सौ आदमी थे । उनके शोर के कारण राजमहल 'मैं' ब्राह्मणो को तो इतना अधिक शोर मच गया कि सभी सोनेवाले जाग गए । महाराज की आज्ञा थी, वह भला क्यो रुकते । वह महाराज के सोने के कमरे तक जाकर उसके सामने खडे होकर शोर मचाने लगे । उनका भारी शोर सुन कर महाराज की नीद भी खुल गई । महाराज उस समय गाढनिद्रा मे थे । निद्रा के नशे मे उनको अपने तनबदन का लेशमात्र भी होशहवास नही था । उन्होने नीद टूटते ही दरबान से पूछा "यह शोर कैसा है ?" " महाराज नन्दिग्राम के ब्राह्मण आपकी आज्ञानुसार बावड़ी लाए है । उसे कहा रखवा दिया जावे ? " ११६
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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