SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 115
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रेणिक बिम्बसार "राजकुमार | अभी-अभी कुछ समय पूर्व गिरिजज से दो राजसेवक मुझ को यह बकरा देकर सम्राट् की यह आज्ञा सुना गए है कि इस बकरे को प्रतिदिन खूब खिलाया-पिलाया जावे । इसे तोल कर दिया जाता है और तोल कर ही इसे सात दिन बाद लिया जावेगा। यदि यह तोल मे लेशमात्र भी घट या बढ गया तो हम लोगो से गाव छीन कर हमको राजदण्ड दिया जावेगा। राजकुमार ! इस गाव के हम समस्त ब्राह्मण आपकी शरण है। आप हमारी राज-कोप से रक्षा करे।" अभयकुमार ब्राह्मण | मै आपको अभय देता हूँ। आप चिन्ता न करे । मै आपको एक ऐसी युक्ति बतलाता हूँ जिससे आप राजकोप से इस बकरे के विषय मे बच जावेगे । आप इस बकरे को दैनिक खूब खिलाया तथा पिलाया करे । केवल सायकाल के समय इसको केवल दो घडी के लिये एक भेडिये के सामने बाध दिया करे। इससे उसका खाया-पिया सब बराबर हो जाया करेगा। यह सुनकर ब्राह्मण लोग हाथ जोडकर अभयकुमार के सामने खडे हो गए और बोले "यदि राजकुमार | आपने हमको अभयदान दिया है तो आप हमारी इतनी प्रार्थना और स्वीकार करले कि जब तक हमारे ऊपर सगाद का कोप शान्त न हो जाव तब तक आप इस गाव से न जावे।" अभयकुमार--ब्राह्मणो | आप को म अभय कर चुका। आपकी इच्छानुसार आपकी आपत्ति का निवारण होने तक मैं आपके गाव क बाहिर अपने शिविर में ही रहूँगा । आप निश्चिन्त रहे। इस पर ब्राह्मणो ने राजकुमार की बडी प्रशसा की। उन्होने राजकुमार के बतलाए अनुसार बकरे को खूब खिलाया-पिलाया और यत्न-पूर्वक एक भेडिये को पकडवाकर दो घडी के लिये बकरे को उसके सामने बान दिया। अभयकुमार वहा से वलकर सीधा अपने शिविर में आया । वह आकर अपनी माता से बोला "माता | हम लोगो को अभी कुछ समय तक इसी नन्दिग्नाम गे रहना होगा। पिता का इस ग्राम पर कोप हुआ है। उन्होने इस ग्राम मे तोल कर
SR No.010589
Book TitleShrenik Bimbsr
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Shastri
PublisherRigal Book Depo
Publication Year1954
Total Pages288
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy