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नन्दिग्राम पर कोप
उत्सव शोक-सभा के रूप में परिणत हो गया । अब तो ग्राम के प्रत्येक व्यक्ति को इस बात का पता लग गया कि नन्दिग्राम पर सम्राट का काप हुआ है। सभी के चेहरो पर हवाइया उडने लगी। सारे गाव मे शोक छा गया, किन्तु सब जानते थे कि जब ग्राम पर राजा का कोप हुआ है तो वह न जाने किस रूप में प्रकट होवे।
इधर नन्दिग्राम मे शोक मनाया जा रहा था उधर सेठ इन्द्रदत्त वेणपद्म नगर से अपनी पुत्री नन्दिश्री तथा दौहित्र अभयकुमार को साथ लेकर गिरिव्रज जा रहे थे। उनके साथ अनेक दासी-दास थे और लगभग पचास सैनिक भी रक्षक के रूप मे थे । सेठ इन्द्रदत्त तथा नन्दिश्री रथ मे बैठे हुए थे और राजकुमार अभय घोडे पर बैठा हुआ चल रहा था। वेणपद्म नगर से चलतेचलते जब ये लोग नन्दिग्राम आए तो दिन छिपने लगा। सेठ इन्द्रदत्त ने आज्ञा दी कि आज की रात यही विश्राम किया जावे। नगर के बाहिर एक मैदान मे इन्होने अपनी सवारियो को उतार कर तम्बू लगा दिय। सैनिक भी अपनी-अपनी कमर खोलकर भोजन-पानी का प्रबन्ध करने लगे। दासियो नं सेठ इन्द्रदत्त तथा महारानी नन्दिश्री के लिये सब प्रबन्ध कर दिया। तब राजकुमार अभय दो चरो को साथ लेकर गाव की शोभा देखने को निकला । किन्तु गाव मे घुसते ही उसको प्रत्येक गाववाले का मुख उदास दिखलाई दिया। अभयकुमार सारे गाव मे घूम कर गाव की चौपाल पर भी गया। वहा नन्दिनाथ बैठा हुआ अत्यन्त करुण स्वर में इस प्रकार विलाप कर रहा था।
“सारे भारत मे ब्राह्मणो का मान है । उनको किसी प्रकार का भी दण्ड नही दिया जाता । किन्तु मगध ही एक ऐसा देश है, जहा निरपराध ब्राह्मणों को भी दण्ड दिया जाता है।"
राजकुमार अभय उसके यह शब्द सुनकर तुरन्त उसके पास जाकर बोला
"तुमको क्या कष्ट है विप्रवर । तुम्हारे ऊपर किस प्रकार का राज-दण्ड आ रहा है । तनिक मै भी तो सुनू ।"
नन्दिनाथ अभयकुमार के रूप-रग तथा वस्त्रो से यह समझ गए कि वह एक राजकुमार है। अतएव उन्होने उनसे विनय-पूर्वक यह कहना आरभ किया ।
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