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परिग्रहकी भीरमें ॥ पूरव करम हरे नूतन न वंध करे, जाचे न जगत सुख ... राचे न शरीरमें ॥ ३३ ॥ ,
. सवैया ३१ सा. ___ जैसे काहू देशको वसैया बलवंत नर, जंगलमें नाई मधु छत्ताको गहत है ।। वाकों लपटाय चहुं ओर मधु मच्छिका पैं, कंवलकी ऑटसों अडंकित रहत है ॥ तैसे समकिती शिव सत्ताको स्वरूप साधे, उदेके उपाधीको समाधिसी कहत है || पहिरे सहनको सनाह मनमें उच्छाह, ठाने सुख राह उद्वेग न लहत है॥ ३४ ॥
.. . दोहा. ज्ञानी ज्ञान मगन रहे, रागादिक मल खोय ॥ 'चित उदास करणी करे, कर्मबंध नहिं होय ॥३५॥ . :
मोह महातम मल हरे, धरे सुमति परकास । मुक्ति पंथ परगट करे, दीपक ज्ञान विलास ॥ ३६॥
अव ज्ञानरूप दीपकका स्वरूप कहै है। सवैया ३१ सा. . जामें धूमको न लेश वातको न परवेश, करम पतंगनिको नाश करे पलमें ॥ दशाको न भोग न सनेहको संयोग- नामें, मोह अंधकारको . वियोग जाके थलों || जामें न तताई नहि राग रंकताई रंच, लह लहे. समता समाधि भाग जलमें ॥ ऐसे ज्ञान दीपकी सिखा जगी. अभंगरूप, निराधार फूरि. पै.दूरी है पुदगलमें ॥ ३७॥ . . .
शंखको दृष्टांत देकर, ज्ञानकी स्वच्छता दिखावे है।सवैया ३१ सा.. .. जैसो जो दरव तामें तैसाही स्वभाव सधे, कोउ द्रव्य काहूको स्वभाव.