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यती तपोधन संयमी, व्रतीसाधु रिषिनाम ॥ ४६॥ दरस विलोकन देखनो, अवलोकन दृग चाल। . लखन दृष्टिनिरखनभुवन,चितवनचाहनभाल ॥४७॥ . ज्ञान वोध अवगममनन, जगतमान जगजान। .. संयम चारितआचरण, चरन वृत्ति धिरवान॥४८॥ सम्यक् सत्य अमोघसत, निसंदेह निरधार । ... ठीकयथारथ उचिततथ, मिथ्या आदिअकार।। ४६ ॥
अजथारथमिथ्या मृषा, वृथा असत्य अलीक । · सुधामोघनिष्फलदितथ,अनुचितअसतअठीक॥५०॥
सवैया इकतीसा-जीव निरजीव करता करम पुण्य पाप, आभव संवर निरजरावंध मोपहे। सरवविशुद्ध स्यादवाद साधिसाधक दुआसद दुवार धरेसमैसार कोष है। दरवानुयोग दरबानुयोग दूरिकरै, निगमको नाटक परमरस पोषहै । ऐसो परमागम बनारसी बखाने यामे, ज्ञानको निदान शुद्ध.चा. रित की चोष है ॥ ५१॥ दोहा-शोभित निजअनुभूतियुत,चिदानंद भगवान।
सार पदारथ आतमा, सकल पदारथ जान ।। ५२ ॥ सवैया तेईसा--जो अपनी दुति आपुविराजत, है परधा. न पदारथ नामी। चेतन अंक लदा निकलंक, महासुखसा. गर को विसरामी ॥ जीव अजीव जिते जगमें, ग्यायक अंतरजामी । सो शिवरूप वसै शिवथानक, ताहि बिलोकनमें शिवगामी ॥ ५३ ॥ .. .. .. .
सवैया तेईसा-जोग धरैरहि जोगसु मिन्न अनंत गुना म केवल ज्ञानी । तासहदे द्रहसों निकसी सरिता समय