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________________ (७) अशुद्ध उपयोगी है। चिदरूप स्वयंभू चिन्मूरति धरमवंत, - प्रानवंत प्रानिजंतु भूत भवभोगीहै ॥ गुनधारी कलाधारी भेषधारी विद्याधारी,अंगधारीसंधगारी जोगधारी जोगीहै ॥ चिन्मय अखंड हंस अखर आतमराम, करमको करतार परम विजोगी है ॥३७॥ दोहा--खविहाय अंवर गगन, अन्तरिक्ष जगधाम । व्योम वियतनभ मेघपथ, ए अकाशकेनाम ॥३॥ यम, कृतांत, अंतक,त्रिदश,आवर्ती, मृतथान। प्रानहरन, आदित तनय, कालनाम परमान ॥३९॥ .. पुन्य सुकृत ऊरधवदन, अकर रोग शुभ कर्म । सुखदायक संसार फल, भागवहिर्मुख धर्म ॥४०॥ पाप अधोमुख एन अघ, कंप रोग दुखधाम । कलिलकलुषकिलविषदुरित,अशुभकर्मकनाम।। ४१॥ सिद्धक्षेत्रत्रिभुवन सुकुट, शिवसग अविचलनाथ। .. मोक्षमुगति बैकुंठ शिव,पंचमगति निरवान ॥४२॥ . प्रज्ञा धिषना से सुखी, धीमेधा मति वुद्धि। . सुरति मनीषा चेतना,आशय अंसविशुद्धि ॥ १३ ॥ ___ अथ विचक्षण पुरुषके नाम। दोहा-निपुन विचक्षन विबुधवुध, विद्याधर विद्वान । ' __. पटु प्रवीनपंडितचतुर, सुधीसुजन मतिमान ॥४४॥ - कलावन्त कोविदकुशल, सुमन दक्ष धीमंत । . *: ज्ञाता सज्जन ब्रह्मविद, तज गुनीजन सन्त ॥४५॥ . अथ मुनीश्वरके नाम । विद्वाहा-मुनि महंत तापस तपी, भिक्षुकचारित धाम ।
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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