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________________ (५०) दमीकों अदत्ती कहै, अधुर वचन बोले तासोंकहै दीनहै॥धरमीकों दंभी निसपहीकों गुमानी कहै, तिशना घटावै तासों कहै भागहीन है । जहां साधु गुण देखै तिन्हकों लगावै दोष, ऐसो कछु दुर्जनको हिरदो मलीनहै ॥ ६ ॥ . चौपाई-में करता में कीन्ही कैसी । अब यों करों कही जो ऐसी ॥ ए विपरीत भाव है जामें । सो बरतै मिथ्यात दसा में ॥ ६१ ॥ दोहा-अहंबुद्धि मिथ्यादसा, धरै सु मिथ्यावन्त। विकल भयो संसार में, करै विलाप अनन्त ॥६॥ सवैया इकतीसा-रविके उदोत अस्त होत दिन २ प्रति, अंजुलीके जीवन ज्यों जीवन घटतु है। कालके ग्रसत छिन छिन होत छीन तन, और के चलत मानो काठसो कटतु है ॥ एते परि मूरख न खोजै परमारथकों, स्वारथ के हेतु भ्रम भारत ठटतुहै। लग्यो फिर लोगनिसों पग्यो परिजोगनिसों, विषे रसभोगनिसों नेकुन हटतु है ॥ ६३ ॥ सवैया इकतीसा-जैसे भृग मत्त वृषादित्य की तपति मांहि, तृषावन्त मुषा जल कारण अटतु है। तैसे भववासी मायाही सों हित मानि मानि, ठानि ठानि भ्रम भूमि नाटक नटतुहै॥आगेको ढुकत धायपाछे बछरा चराय, जैसे दृगहीन नर जेवरी वटतु है। तैसे मूढ़ चेतन सुकृत करतूति करै, रोवत हसतफल खोवतखटतु है ॥ ६४ __ सवैया इकतीसा-लिये दृढ़ पेच फिरै लोटन कबूतर सो उलटो अनादि को न कहो सु लटतु है । जाको फल दुःख -- ताही साता सो कहत सुख, सहित लपेटी असी धारासी
SR No.010587
Book TitleSamaysar Natak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBanarsidas Pandit
PublisherBanarsidas Pandit
Publication Year
Total Pages122
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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